किन्हीं चार परिणामों का उल्लेख कीजिए, जहाँ लोकतंत्र असफल रहा।
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Explanation:
देश में लोकसभा के चुनावों का दौर चल रहा है और कहा यह जाता है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारत में चुनावों को एक उत्सव की भाँति लिया जाता है। भारत के लोकतंत्र की वैश्विक प्रतिष्ठा भी है और हमारा निर्वाचन आयोग कई विकासशील एवं अल्प-विकसित देशों में होने वाले चुनावों के संचालन में सहयोग भी देता है।
लोकतंत्र सूचकांक (Democracy Index) में भारत की स्थिति
लंदन स्थित द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट हर साल दुनियाभर के देशों के लिये डेमोक्रेसी इंडेक्स यानी लोकतंत्र सूचकांक जारी करता है। 2018 के लिये 167 देशों का यह सूचकांक जारी किया गया और इसमें भारत को 41वें स्थान पर रखा गया है। पिछले साल की तुलना में भारत को एक पायदान का फायदा मिला है, लेकिन इसके बावजूद भारत को दोषपूर्ण लोकतांत्रिक (Flawed Democracy) देशों की श्रेणी में रखा गया है। जहाँ तक स्कोर का सवाल है, पिछले 11 सालों में भारत को 2017 और 2018 दोनों वर्षों में समान रूप से सबसे कम स्कोर मिला। इस रिपोर्ट में एशिया की स्थिति में सुधार की प्रशंसा की गई है। लेकिन, चिंता का विषय यह है कि एशिया के अधिकतर देशों को दोषपूर्ण लोकतांत्रिक देशों की श्रेणी में रखा गया है।
द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट लंदन स्थित इकोनॉमिस्ट ग्रुप का एक हिस्सा है जिसकी स्थापना 1946 में हुई थी। यह दुनिया के बदलते हालात पर नज़र रखती है और दुनिया की आर्थिक-राजनीतिक स्थिति के पूर्वानुमान द्वारा देश विशेष की सरकार को खतरों से आगाह करती है।
पाँच पैमानों पर दी जाती है रैंकिंग
इस रिपोर्ट में दुनिया के देशों में लोकतंत्र की स्थिति का आकलन पाँच पैरामीटर्स पर किया गया है- चुनाव प्रक्रिया और बहुलतावाद (Pluralism), सरकार की कार्यशैली, राजनीतिक भागीदारी, राजनीतिक संस्कृति और नागरिक आज़ादी। गौरतलब है कि ये सभी पैमाने एक-दूसरे से जुड़े हैं और इन पाँचों पैमानों के आधार पर ही किसी भी देश में मुक्त और स्वच्छ चुनाव और लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थिति का पता लगाया जाता है। इस रिपोर्ट में 9.87 अंकों के साथ नॉर्वे पहले स्थान पर और 1.08 अंकों के साथ उत्तर कोरिया सबसे आखिरी स्थान पर है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु
रिपोर्ट में दुनिया के 167 देशों को शासन के आधार पर चार तरह के पैरामीटर्स पर रैंकिंग दी गई है, जिनमें पूर्ण लोकतंत्र, दोषपूर्ण लोकतंत्र, हाइब्रिड शासन और सत्तावादी शासन शामिल हैं।
167 देशों में केवल 20 देशों को पूर्ण लोकतांत्रिक देश बताया गया है और इसके तहत 167 देशों की केवल 4.5 फीसदी आबादी शामिल है।
सबसे ज़्यादा 43.2 फीसदी आबादी दोषपूर्ण लोकतांत्रिक देशों में बसती है और इसके तहत कुल 55 देश शामिल हैं।
हाइब्रिड शासन के तहत 39 और सत्तावादी शासन के तहत 53 देशों को शामिल किया गया है।
मध्य-अमेरिका का कोस्टा रिका एकमात्र ऐसा देश है जिसने दोषपूर्ण लोकतंत्र की श्रेणी से निकलकर पूर्ण लोकतंत्र की श्रेणी में जगह बना ली है।
मध्य अमेरिका के ही निकारागुआ में लोकतंत्र पर भरोसा कम हुआ है और वह दोषपूर्ण लोकतंत्र से सत्तावादी शासन की श्रेणी में चला गया है।
2017 के मुकाबले 2018 में जहाँ 42 देशों के कुल स्कोर में कमी आई है, वहीं 48 देश ऐसे भी हैं जिनके कुल अंकों में बढ़ोतरी हुई है।
लोकतंत्र असफलता के चार परिणाम
लोकतंत्र एक प्रकार का शासन व्यवस्था है। जिसमें सभी व्यक्ति को समान अधिकार होता है। एक अच्छा लोकतंत्र वह है जिसमें राजनीतिक और सामाजिक न्याय के साथ-साथ आर्थिक न्याय की व्यवस्था भी हो। देश में यह शासन प्रणाली लोगों को सामाजिक राजनीतिक तथा धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करती है।
- लोकतंत्र से अच्छी सरकारें उत्पन्न करने की अपेक्षा की जाती है तो यह है अपेक्षा करना उचित है कि वह विकास के साक्ष्य प्रस्तुत करेंगे जो दर्शाता है कि व्यवहार में कई लोकतंत्र ने इस अपेक्षा को पूरा किया है। उच्च आर्थिक विकास हासिल करने में लोकतंत्र की अक्षमता हमें चिंतित करती है।
- लोकतंत्र लोगों की सरकार है इसलिए कोई भी इससे आर्थिक विषमताओं को कम करने की उम्मीद कर सकता है। लेकिन यह एक बेहतर सच्चाई है कि जब कोई देश आर्थिक विकास हासिल कर लेता है तब भी धन का वितरण इस तरह से नहीं होता कि देश के सभी नागरिकों का हिस्सा हो और बेहतर जीवन जी सके दुनिया के अधिकांश लोकतंत्र इस मुद्दे पर बुरी तरह विफल रहे हैं।
- गरीबी कम करने के मुद्दे पर लोकतंत्र भी विफल रहा है । अती धनवानों की एक छोटी संख्या धन और आय के अनुपातहीन हिस्से का आनंद लेती है इतना ही नहीं देश की कुल आय में उनका हिस्सा बढ़ता ही जा रहा है। समाज के निचले तबके पर निर्भर रहने के लिए बहुत कम है। उनकी आय घटती जा रही है।
- लोकतंत्र अक्सर लोगों की जरूरतों को विफल कर देता है और अक्सर अपनी आबादी के बहुमत की मांगों को नजरअंदाज कर देता है। भ्रष्टाचार की नियमित बातचीत हमें यह समझाने के लिए काफी है कि लोकतंत्र इस बुराई से मुक्त नहीं है।
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