किन्हीं दो देशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए बताएँ कि उन्नीसवीं सदी में राष्ट्र किस प्रकार विकसित हुए।
Answers
उत्तर :
उन्नीसवीं सदी में राष्ट्र निम्न प्रकार से विकसित हुए :
19वीं सदी में राष्ट्रवाद एक नई शक्ति बनकर उभरा। इससे यूरोप की राजनीति में भारी परिवर्तन आए। अंततः यूरोप के बहु राष्ट्रों वाले साम्राज्य का स्थान राष्ट्रीय राज्य ने ले लिया। इन राज्यों का क्षेत्र परिभाषित था और उनकी प्रभु सत्ता केंद्रीय शक्ति के हाथ में थी। ग्रेट ब्रिटेन ,ऑस्ट्रिया व हंगरी आदि इसी प्रकार के राज्य थे । इन राष्ट्रों के विकास के लिए भिन्न-भिन्न कारक उत्तरदाई थे, परंतु इन में कुछ सामान्य कारक भी शामिल थे जो निम्नलिखित थे :
(क) शासकों का शक्तिशाली बनना।
(ख) नागरिकों में एक सांझा पहचान का भाव।
(ग) समाज संस्कृति, सामान भाषा, समाज इतिहास अथवा विरासत।
(घ) सामान्य इच्छा एवं संकल्प।
(ड़) साथ मिलकर आगे बढ़ने की भावना।
एक राष्ट्र के लोगों के साझेपन की भावना अनंतकाल से नहीं थी । यह संघर्षों तथा नेताओं तथा आम लोगों की गतिविधियों का परिणाम थी। इसी भावना ने भिन्न-भिन्न जनसमूहों को राष्ट्र के रूप में बांधा।
आशा है कि है उत्तर आपकी मदद करेगा।
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Explanation:
समाजशास्त्र एक नया अनुशासन है अपने शाब्दिक अर्थ में समाजशास्त्र का अर्थ है – समाज का विज्ञान। इसके लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द सोशियोलॉजी लेटिन भाषा के सोसस तथा ग्रीक भाषा के लोगस दो शब्दों से मिलकर बना है जिनका अर्थ क्रमशः समाज का विज्ञान है। इस प्रकार सोशियोलॉजी शब्द का अर्थ भी समाज का विज्ञान होता है। परंतु समाज के बारे में समाजशास्त्रियों के भिन्न – भिन्न मत है इसलिए समाजशास्त्र को भी उन्होंने भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया है।
अति प्राचीन काल से समाज शब्द का प्रयोग मनुष्य के समूह विशेष के लिए होता आ रहा है। जैसे भारतीय समाज , ब्राह्मण समाज , वैश्य समाज , जैन समाज , शिक्षित समाज , धनी समाज , आदि। समाज के इस व्यवहारिक पक्ष का अध्यन सभ्यता के लिए विकास के साथ-साथ प्रारंभ हो गया था। हमारे यहां के आदि ग्रंथ वेदों में मनुष्य के सामाजिक जीवन पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।
इनमें पति के पत्नी के प्रति पत्नी के पति के प्रति , माता – पिता के पुत्र के प्रति , पुत्र के माता – पिता के प्रति , गुरु के शिष्य के प्रति , शिष्य के गुरु के प्रति , समाज में एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति के प्रति , राजा का प्रजा के प्रति और प्रजा का राजा के प्रति कर्तव्यों की व्याख्या की गई है।
मनु द्वारा विरचित मनूस्मृति में कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था और उसके महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है और व्यक्ति तथा व्यक्ति , व्यक्ति तथा समाज और व्यक्ति तथा राज्य सभी के एक दूसरे के प्रति कर्तव्यों को निश्चित किया गया है। भारतीय समाज को व्यवस्थित करने में इसका बड़ा योगदान रहा है इसे भारतीय समाजशास्त्र का आदि ग्रंथ माना जा सकता है।