किन कारणों से 1980 मैं मध्यावधि चुनाव करवाने पड़े?
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जनवरी 1980 में हुए आम चुनाव से पहले एक बड़ी घटना थी भारतीय जनता पार्टी की स्थापना। दरअसल 1977 में पहली बार कांग्रेस को शिकस्त देने वाली जनता पार्टी ज्यादा दिन तक अपना वजूद कायम न रख सकी। 1979 में आरएसएस और भारतीय जनसंघ ने जनता पार्टी से समर्थन खींच लिया। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। भारतीय जनसंघ से जुड़े नेताओं ने मिलकर एक नई पार्टी का गठन किया जिसका नाम रखा गया भारतीय जनता पार्टी। दिसंबर, 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में मुंबई में बीजेपी की पहली राष्ट्रीय बैठक हुई। लेकिन 1980 के चुनाव की असली कहानी जनता दल, लोक दल या बीजेपी से नहीं जुड़ी थी। और न ही इसके हीरो इन पार्टियों से जुड़े थे। एक बड़े फेरबदल के लिए जनता तैयार हो चुकी थी।
देश पर इमरजेंसी थोपने की वजह से 1977 के चुनाव में कांग्रेस को कड़ी हार का सामना करना पड़ा। मतदाताओं ने जनता पार्टी पर अपना भरोसा जताया लेकिन 18 महीने के भीतर ही जनता पार्टी में फूट पड़ गई। ऐसे में कांग्रेस की मदद से चरण सिंह ने सरकार बनाई लेकिन बाद में कांग्रेस ने उनसे समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद 22 अगस्त, 1979 को राष्ट्रपति एन संजीवा रेड्डी ने लोकसभा भंग कर दी। जनवरी, 1980 को मध्यावधि चुनाव कराने का फैसला किया गया।
इमरजेंसी की वजह से जनता में कांग्रेस की जो नकारात्मक छवि बनी हुई थी उस छवि को मिटाना कांग्रेस के लिए चुनौती थी। इसलिए चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने महंगाई, सामाजिक समस्या और कानून-व्यवस्था की बहाली को तरजीह दी।
कांग्रेस पार्टी को सत्ता से हटा कर सत्ता में आई जनता पार्टी देश को नई दिशा देने में सफल नहीं हो सकी। 18 महीने चलने के बाद ही सरकार में फूट साफ दिखाई देने लगी और 'मोरार जी' कि सरकार बहुमत खो वैठी। इसके बाद चौधरी चरण सिहं कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने में सफल हुए, कुछ समय बाद कांग्रेस के समर्थन वापसी से सरकार गिर गई और देश को पुनः चुनाव की तरफ लौटना पड़ा।