) कौन - सी दो स्थितियां मनुष्य को ईश्वर से दूर करने वाली होती है ? वाख
कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए |
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Explanation:
संत कबीर नगर,
संसार में मोह माया के बंधनों में रहकर ईश्वर की सच्ची भक्ति नहीं की जा सकती है। व्यक्ति युवावस्था में रह कर मोह का त्याग कर ईश्वर प्राप्ति के साधन ढ़ूढ़े। मनुष्य जब वृद्धावस्था में पहुंचता हैं तब वह प्रभु के शरण में जाने का प्रयास करता हैं। लेकिन तब तक जीवन का बहुमूल्य समय काफी पीछे छूट जाता है। मनुष्य को चाहिये कि वह सुख दुख दोनों में भगवान का भजन करे जिससे समय आने पर आत्मा परमात्मा में लीन हो सके।
उक्त बातें बुधवार की सायं बंडा बाजार में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में प्रवचन करते हुए पंडित विद्याधर भारद्वाज ने कहीं। उन्होंने कहा कि सच्चे मन से की जाने भक्ति कभी निष्फल नहीं होती। प्रत्येक युग में भगवान के प्रति सच्ची भक्ति की जो मिशाल मिलती है उससे सभी को सीख लेने की आवश्यकता है। श्रीकृष्ण के प्रति मीरा का अगाध प्रेम हो या त्रेता में केवट का भगवान के प्रति प्रेम सभी में निस्वार्थ प्रेम की अविरल धारा बहती है। ईश्वर के प्रति भक्ति निष्काम भाव से होनी चाहिये तभी मनुष्य गो¨वद का दुलारा बनता है। भगवान ने भक्ति में कभी जाति को नहीं बल्कि भक्त के भावों को महत्व दिया है। गंगा के पावन तट पर केवट ने कहा कि यह मेरा सौभाग्य है कि प्रभु आज मेरे द्वार आए हैं। प्रेम व भक्ति में लीन केवट ने भगवान राम के चरणोदक का रस पान कर जीवन को धन्य बना लिया। इस अवसर पर केवट ने कहा कि प्रभु आप को ब्रह्मा, शंकर भी नहीं समझ पाए तो मै तो एक तुच्छ सेवक हूं। केवट ने निवेदन करते हुए कहा कि प्रभु इस दास को भूलना मत। जब यह दास आप के धाम आए तो प्रभु हमें भी पार लगा देना। कथा व्यास ने कहा कि लोभी संसार में मनुष्य
को भगवत प्राप्ति के लिए मोह माया का त्याग करना चाहिए। इस दौरान भगवान कृष्ण के बाल लीला की झांकी देख श्रोता भक्त भाव विभोर हो उठे।
इस अवसर पर यजमान मूलचंद अग्रहरि, अशोक कुमार अग्रहरि, राजकुमार अग्रहरि, विजय कुमार, राम बेलास, शंकर दयाल, अहमद, राजेंद्र चौधरी तथा भारी संख्या में महिला श्रोता भक्त मौके पर मौजूद रहे।