(क). प्राचीन काल की तुलना में आधुनिक मानव वृक्षों के प्रति संवेदनहीन होता जा रहा है, तुलनात्मक आधार पर स्पष्ट कीजिए|
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Explanation:
प्रकृति चेतना से आत्मसात कर वृक्ष पूजा और वृक्षा रक्षा से जीवन में सुख-समृद्धि और आनंद की कामना की है। आज इसी भावना को विस्तारित कर हम मानवता के भविष्य को सुरक्षित रख सकते हैं। भारतीय संस्कृति वृक्ष-पूजक संस्कृति है। वृक्षों में देवत्व की अवधारणा और उसकी पूजा की परम्परा हमारे देश में प्राचीन काल से रही है। वृक्षों की पूजा प्रकृति के प्रति आदर प्रकट करने का सरल माध्यम है, वृक्षों के प्रति ऐसा प्रेम शायद ही किसी देश की संस्कृति में हो जहां वृक्ष को मनुष्य से भी ऊंचा स्थान दिया गया है।
वैदिक काल में प्रकृति के आराधक भारतीय ऋषि भी अपने अनुष्ठानों में वनस्पति पूजा को विशेष महत्व देते थे। वेदों और आरण्यक ग्रथों में प्रकृति की महिमा का सर्वाधिक गुणगान है। इस काल में वृक्षों को लोक देवता की मान्यता दी गयी थी। वृक्षों में देवत्व की अवधारणा का उल्लेख वेदों के अतिरिक्त प्रमुख रूप से मत्स्यपुराण, अग्निपुराण, भविष्यपुराण, नारदपुराण, रामायण, भगवदगीता और शतपथ ब्राह्मण आदि ग्रंथों में मिलता है। मोटे रूप में देखे तो वेद, पुराण, संस्कृत और सूफी साहित्य, आगम, पंचतंत्र, जातक कथायें, कुरान, बाइबिल, गुरुग्रंथ साहब हो या अन्य कोई धार्मिक ग्रंथ हो सभी में वृक्षों में लोक मंगलकारी स्वरूप का परिचय मिलता है। दुनिया में सभी प्राचीन सभ्यताओं का आधार मनुष्य का प्रकृति के प्रति प्रेम और आदर का रिश्ता है। इसी कारण पेड़, पहाड़, नदी और मनुष्येत्तर प्राणियों की पूजा की परम्परा का प्रचलन हुआ। मोहनजोदड़ों और हड़प्पा की खोदाई से मिले अवशेषों से पता चलता है कि उस समय समाज में मूर्ति पूजा के साथ ही पेड़-पौधों एवं जीव जंतुओं की पूजा की परंपरा भी थी। भारतीय प्राचीन साहित्यिक ग्रंथों में चित्रकला, वास्तुकला और वृक्ष पूजा के अनेक प्रसंग मिलते हैं। अंजता के गुफा, चित्रों और सांची के तोरण स्तंभों की विभिन्न आकृतियों में वृक्ष-पूजा के अनेक प्रसंग मिलते हैं। अंजता के गुफा चित्रों और सांची में तोरण स्तंभों की विभिन्न आकृतियों में वृक्ष-पूजा के ²श्य है। जैन और बौद्ध साहित्य में वृक्ष-पूजा का विशेष स्थान रहा है। रक्षा सूत्र बांधकर दिलाया वृक्ष बचाने का संकल्प
मुहम्मदाबाद : दैनिक जागरण के अभियान से प्रेरित होकर सोमवार को चकशाह मुहम्मद उर्फ मलिकपुरा के ग्राम प्रधान शशिकांत शर्मा उर्फ भूवर के नेतृत्व में युवकों ने नसीरपुर मठ छोटा पोखरा के पास एकत्रित होकर वृक्ष बचाने व उनकी रक्षा का संकल्प लिया। इस मौके पर युवक पीपल के वृक्ष में जीवनदाता लिखी तख्ती लगाकर लोगों को पौधरोपण के प्रति जागरूक किया। वहीं रक्षा सूत्र बांधकर वृक्षों की सुरक्षा व रख रखाव का संकल्प लिया। इस मौके पर ग्राम प्रधान शशिकांत शर्मा उर्फ भूवर ने बताया कि पयरवरण की सुरक्षा को लेकर हमेशा प्रयत्?नशील रहते हैं। आजपेड़ ही हमारे जीवन है। पेड़ जहां हमारे शरीर से निकलने वाली कार्बनडाई आक्साइड को सोखने व हमें जीवित रहने के लिए आक्सीजन देने का कार्य कर रहे हैं। वास्तव में पेड़ हमारे जीवनदाता है। हमें इस बात को हमेशा ध्यान में रखकर अपने आसपास एकाध पौधे लगाए ताकि आने वाले समय में हमारी पीढि़यां सुखमय जीवन यापन कर सके। इस मौके पर उन्होंने मौजूद युवकों से पौधरोपण करने व उनकी सुरक्षा करने का संकल्प दिलाया। ---
सामाजिक संस्थाएं भी आने लगी आगे
- जीवनदाता अभियान से अब सामाजिक संस्थाएं भी जुड़ने लगी हैं। पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए 'आदिशक्ति सेवा संस्थान' के सदस्यों ने पेड़ को रक्षा सूत्र बांधकर उसकी रक्षा एवं पोषण की वचन लिया। संस्था के द्वारा यह वचन लिया गया कि हम इन पेड़ों की रक्षा के साथ शहर को और हराभरा व सुंदर बनाने के लिए नए पेड़ पौधों को भी लगाएंगे और उनकी देखभाल का जिम्मा भी लेंगे। इसके लिए हम प्रशासनिक लोगों का भी सहयोग लेंगे ताकि हमें पौधे आसानी से उपलब्ध हो जाएं। संस्था के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुजीत ¨सह का कहना है कि शीघ्र ही जून महीने के अंतिम में संस्था के तरफ से अधिक से अधिक पौधरोपण का कार्य किया जाएगा। संस्था के सदस्य टुन्नू ¨सह ने कहा कि पेड़ पौधों के अंधाधुंध कटाई होने से आज सांस लेना तक दुश्वार हो गया है। इस गंभीर समस्याओं को देखते हुए तथा इससे निपटने के लिए हमें पर्यावरण पे ध्यान देना होगा। संस्था के मीडिया प्रभारी मनीष ¨सह ने बताया कि हमारे संस्था में वृक्षारोपण, उनका देखभाल आदि प्रमुख मुद्दों में से एक है। इस अवसर पर संस्था के तरफ से सुजीत ¨सह, टुन्नू ¨सह, मनीष ¨सह, दुष्यन्त ¨सह तथा अन्य सामाजिक लोग भी उपस्थित रहे।
तपन व गर्मी में वट वृक्ष के नीचे मिलती है शीतलतामुहम्मदाबाद : ग्राम पंचायत चकशाह मुहम्मद उर्फ मलिकपुरा से सटे नसीरपुर मठिया छोटा पोखरा के नाम से पहचान रखने वाला यह स्थान गर्मी के दिनों में लोगों की भीड़ से भरा रहता है। कारण यहां सैकड़ों वर्ष पुराना एक वट वृक्ष है। वट वृक्ष के नीचे अगल बगल के मुहल्लों गांवों के लोग तो पहुंचकर गर्मी में शीतलता का अनुभव करते हैं। ग्रामीण इलाकों से कस्बे में दूध वाले दूधिया भी दोपहर इसी वट वृक्ष के नीचे बिताते हैं। इस पेड़ के उम्र के बारे में कोई भी स्पष्ट रूप से नहीं बता पाता कि आखिर यह कितना पुराना है। ग्राम पंचायत चकशाह मुहम्मद उर्फ मलिकपुरा के ग्राम प्रधान शशिकांत शमर उर्फ भुवर ने बताया कि इस वट वृक्ष के बारे में हमारे दादा जी भी स्पष्ट नहीं बता पाते थे कि आखिर यह कितना पुराना है। इस वट वृक्ष की सबसे बड़ी खासियत है कि कितना भी गर्मी व तपन पड़ने के बावजूद इसके नीचे बैठने पर शीतलता का अनुभव होता है। दोपहर में गर्मी से मन घबराने पर यही आकर चबूतरे पर विश्राम किया जाता है। बताया कि परिसर में साफ सफाई को लेकर उनकी टीम हमेशा सक्रिय रहती है।
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