Business Studies, asked by rajbhrat72, 3 months ago

कंपनी की विशेषताएं ?​

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Answered by queenbee056
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Answer:

ऐच्छिक संघ कम्पनी व्यक्तियों का ऐच्छिक संघ है जो लाभ कमाने के उद्देश्य से बनायी जाती है। ...

वैधानिक कृत्रिम अस्तित्व ...

पृथक वैधानिक आस्तित्व ...

सीमित दायित्व ...

शाश्वत अस्तित्व ...

सामान्य उद्देश्य ...

सम्पत्ति पर स्वामित्व ...

कार्युक्षेत्र की सीमाएं

Answered by itzshrimpy
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(Characteristics of a Company)

2 कम्पनी की विशेषताएँ

कम्पनी के प्रमुख विशेषताओं या लक्षणों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) विधान द्वारा निर्मित कृत्रिम व्यक्ति (An Artificial Person Created by Law)- कम्पनी को विधान द्वारा निर्मित कृत्रिम व्यक्ति माना जाता है, क्योंकि इसे जन्म देने वाला ईश्वर नहीं होता, बल्कि इसका जन्म कम्पनी विधान के अधीन होता है। जितने अधिकार एवं दायित्व मनुष्य के होते हैं, उतने ही कम्पनी के भी हो सकते हैं। दोनों में अन्तर केवल इतना ही है कि मनुष्य का जन्म और मरण प्राकृतिक रूप से होता है, जबकि एक कम्पनी का निर्माण एवं समापन मानव द्वारा निर्मित विधान के अनुसार होता है।

(2) पृथक् वैधानिक अस्तित्व (Separate Legal Entity)-विधान द्वारा निर्मित व्यक्ति होने के कारण कम्पनी का अस्तित्व इसके सदस्यों से बिल्कुल पृथक होता है। भारत के उच्चतम न्यायालय के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं भारत के भूतपूर्व उपराष्ट्रपति ने लिखा है कि "एक समामेलित कम्पनी का पृथक् अस्तित्व होता है तथा कानून इसे अपने सदस्यों से पृथक मानता है। ऐसा पृथक् अस्तित्व समामेलन होते ही उत्पन्न हो जाता है।" दूसरे शब्दों में, कम्पनी का अस्तित्व उन लोगों सदस्यों से भिन्न होता है जो कम्पनी की स्थापना करते है या उसके अंश खरीदते हैं। इतना ही नहीं कम्पनी एवं कम्पनी के संचालकों का भी पृथक पृथक् अस्तित्व होता है। यदि किसी कम्पनी के लगभग सभी अंश एक ही व्यक्तिके पास हो तो भी कम्पनी एवं ऐसे व्यक्ति का पृथक्-पृथक् अस्तित्व बना रहेगा। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन इंग्लैण्ड के हाउस ऑफ लाइंस ने सालोमन बनाम सालोमन एण्ड कम्पनी लिमिटेड के विवाद में किया गया।

(3) सवत् उत्तराधिकार (Perceptual Succession)- सतत् उत्तराधिकार का आशय स्थायी अस्तित्व से लगाया जाता है। कम्पनी का निर्माण विधान द्वारा होने के कारण इसे वैधानिक व्यक्ति कहा जाता है। अतः इसका समापन भी विधान द्वारा ही होता है। अतः जब तक इसके समापन की कानूनी प्रक्रियाएँ पूरी नहीं हो जाती, तब तक कम्पनी का अस्तित्व अनवरत चलता रहता है। कम्पनी के सदस्यों की मृत्यु, अंश हस्तान्तरण, उनका दिवालियापन आदि कम्पनी के अस्तित्व को किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं करते, भले ही कम्पनी के समस्त सदस्यों की मृत्यु हो जाये।

(4) सीमित दायित्व (Limited Liability)- कम्पनी के सदस्यों का दायित्व उनके द्वारा क्रय की गई अंश पूंजी तक सीमित होता है। कम्पनी पर अंशधारी केवल उस सीमा तक देय होते हैं जिस सीमा तक उन्होंने अपने द्वारा खरीदे गये अंशों पर भुगतान नहीं किया है। वर्तमान समय में दो प्रकार की सीमित दायित्व वाली कम्पनियों- (1) अंशों द्वारा सीमित, तथा (ii) गारण्टी द्वारा सीमित कम्पनियों ही स्थापित हो सकती है। अंशो द्वारा सीमित कम्पनी में सदस्यों का दायित्व उनके द्वारा क्रय किए गए अंश मूल्य तक ही सीमित होता है, जबकि गारण्टी द्वारा सीमित कम्पनी में गारण्टी किये गये धन तक सीमित रहता है।

(5) सार्यमुद्रा (Common Seal) कम्पनी विधान के अन्तर्गत निर्मित कृत्रिम व्यक्ति है। अतः वह अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से अनुबन्ध करती है। इन प्रतिनिधियों द्वारा किये गये। 'अनुबन्ध सार्वमुद्रा के अधीन होने आवश्यक है। इसी कारण प्रत्येक कम्पनी को समामेलन के पश्चात् एक सार्वमुद्रा रखनी होती है जिस पर कम्पनी का नाम स्पष्ट अक्षरों में ख़ुदा होता है। कम्पनी द्वारा निर्गमित कोई भी प्रपत्र तभी मान्य होगा जबकि उस पर कम्पनी की सार्वमुद्रा अंकित हो।

(6) अंशपूँजी एवं अंशधारी (Share Capital and Shareholders)- कम्पनी की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसकी पूँजी छोटे-छोटे कई भागों में बेटी हुई होती है। इन छोटे-छोटे हिस्सों को अंश कहा

जाता है। जो व्यक्ति इन अंशों को खरीदता है, उन्हें कम्पनी का अंशचारी कहा जाता है।

(7) स्वामित्व एवं प्रबंध का पृथक होना (Separation of Ownership and Management)- कम्पनी में स्वामित्व पृथक-पृथक होता है। कम्पनी का स्वामित्व अंशधारियों के हाथों होता है जबकि प्रबंध अंशधारियों के हाथों में न होकर उनके द्वारा चुने हुए व्यक्तियों (संचालकों) के हाथों में होता है। अंशधारी कम्पनी के संचालन को बोझ उठाए बिना ही लाभ प्राप्त करते हैं।

(8) अंशधारी एजेन्ट नहीं होता (Shareholder is not an Agent )- कम्पनी में अंशधारी

कम्पनी का एजेन्ट नहीं होता, अतः वह अपने कार्यों से कम्पनी को बाध्य नहीं कर सकता। कम्पनी

केवल संचालक मण्डल के कार्यों के लिए ही बाध्य की जा सकती है।

(9) कार्य क्षेत्र की सीमाएँ (Limitations of the Activities) - एक कम्पनी अपने पार्षद् सीमानियम तथा पार्षद् अन्तर्नियमों से बाहर कार्य नहीं कर सकती है। इसका कार्य क्षेत्र कम्पनी अधिनियम तथा इसके सीमानियम व अन्तर्नियम द्वारा सीमित होता है।

(10) लाभ के लिए ऐच्छिक संघ (Voluntary Association for Profit)- प्रत्येक कम्पनी सामाजिक हित को ध्यान में रखते हुए लाभ कमाने के उद्देश्य से बनायी जाती है। कम्पनी के लाभों

में प्रत्येक हित का भुगतान करने के पश्चात् कम्पनी नियमों के अनुसार साधारण अंशधारियों में बाँट दिया जाता है। कम्पनी एक संघ है। किसी को बारी नहीं बनाया जा सकता है।

((11) अंश हस्तान्तरण (Transferable Shares) साधारणतया कम्पनी के अंशधारी अपने अंशों का हस्तान्तरण करने का अधिकार रखते हैं अर्थात् वे अपने अंशों का हस्तान्तरण किसी अन्य व्यक्ति के पक्ष में कर सकते हैं।

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