कार्ल मार्क्स के अनुसार जनता की अफीम कौन है
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धर्म उत्पीड़ीत प्राणी का उच्छ्वास है, एक हृदय-विहीन दुनिया का हृदय है, आत्माहीनों की आत्मा है। यह जनता की अफीम है। जो धर्म भ्रामिक खुशी देता है, उसे समाप्त कर वास्तविक खुशी की माँग करनी है।
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