कोरोना महामारी के चलते २०२० से लेकर २०२१ तक की संपूर्ण जानकारी प्रस्तुत करिए
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लेकिन, पिछले साल मार्च महीने में वो गोवा में एक केयर होम में काम करती थीं. यानी वो एक फ्रंटलाइन वर्कर थीं.
पिछले साल भारत में अचानक देश भर में लॉकडाउन लगाए जाने के बाद जो कुछ हुआ, उसने सीमा की ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल दी.
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देश को कोरोना की भयंकर महामारी से बचाने के लिए मोदी सरकार ने एक साल पहले लगाया था लॉकडाउन.
सीमा ने हमसे कहा कि, "वो सब इतना ख़ौफ़नाक था. मुझे लगता है कि वैसे हालात का सामना करने से बेहतर होगा कि मैं मर जाऊं. आज भी जब मैं उन दिनों को याद करती हूं तो मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगता है."
वायरस के प्रकोप के बावजूद उन्हें निजी सुरक्षा उपकरणों यानी पीपीई किट के बग़ैर काम करने को मजबूर किया गया. सीमा ने बताया कि उनके मालिक ने चेतावनी दी थी कि उन सबको अव्वल तो तनख़्वाह ही शायद मिले, और मिली भी तो आधी ही दी जाएगी.
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समाप्त
हालात इतने ख़राब थे कि सीमा ने नौकरी छोड़ने का फ़ैसला किया.
लॉकडाउन की घोषणा के बाद शहरों में रह रहे लाखों प्रवासी मज़दूरों ने गांवों की तरफ़ पलायन शुरू कर दिया था
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लॉकडाउन की घोषणा के बाद शहरों में रह रहे लाखों प्रवासी मज़दूरों ने गांवों की तरफ़ पलायन शुरू कर दिया था
वो कहती हैं कि, "हम लोग वहां क़रीब एक महीने तक फंसे रहे थे. वो बहुत बुरा वक़्त था. हमें किसी ने कोई मदद नहीं दी. बल्कि, पुलिसवाले तो हमें पकड़कर थाने ले गए थे. हमने बार-बार मदद की गुहार लगाई. आख़िरकार, बाहरी मज़दूरों को घर पहुंचाने वाली एक ट्रेन में सफर के लिए हमारा नाम भी दर्ज किया गया."
"जब हम ट्रेन में सवार हुए, तो हमारा सामना सरकार के असल इंतज़ामों से हुआ. ट्रेन में एक आदमी था, जो हम लोगों पर बस चिल्लाता रहता था. हमसे दूरी बनाए रखने को कहता था. लेकिन, जब वो ख़ुद हमें भेड़ बकरियों की तरह ट्रेन में ठूंस रहे थे, तो फिर हम कैसे आपस में दूरी बनाते? सच तो ये है कि ऐसे हालात के लिए अधिकारी बिल्कुल तैयार नहीं थे."
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लॉकडाउन लगाने से पहले पीएम मोदी ने किसकी सलाह ली थी?
इसके पीछे की कहानी
क्या आपको पता है कि जब प्रधानमंत्री ने 24 मार्च 2020 को पूरे देश में लॉकडाउन लगाने का एलान किया था, तो उससे पहले ही कितने राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अपने-अपने यहां लॉकडाउन लगा चुके थे?
सरकार के आंकड़ों पर यक़ीन करें, तो देश के तीस राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ये क़दम प्रधानमंत्री की घोषणा से पहले ही उठा चुके थे. राज्यों ने ये लॉकडाउन, अपने-अपने यहां कोरोना वायरस के प्रकोप का आकलन करके लगाया था. कई राज्यों में ये लॉकडाउन 31 मार्च 2020 तक प्रभावी रहना था.
सवाल ये है कि जब इतने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पहले ही 'संपूर्ण लॉकडाउन' लगा हुआ था, तो फिर राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की क्या ज़रूरत थी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 अप्रैल 2020 को राष्ट्र के नाम संदेश देते हुए लॉकडाउन को तीन मई तक के लिए बढ़ा दिया था
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 अप्रैल 2020 को राष्ट्र के नाम संदेश देते हुए लॉकडाउन को तीन मई तक के लिए बढ़ा दिया था
केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन को जायज़ ठहराते हुए, 24 मार्च को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने कहा कि, 'वायरस का संक्रमण रोकने के लिए उठाए जा रहे तमाम क़दमों में एकरूपता और समन्वय बनाए रखने के लिए ऐसा करना ज़रूरी था.'
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अध्यक्ष स्वयं प्रधानमंत्री हैं.
तो, जब केंद्र सरकार ने वायरस की रोकथाम की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर लेते हुए, देश भर में लॉकडाउन लगाया, तो उसने इसके लिए कैसी तैयारी की गई थी?
सूचना के अधिकार क़ानून 2005 के तहत मिले अधिकारों का उपयोग करते हुए, हमने केंद्र सरकार की प्रमुख एजेंसियों, संबंधित सरकारी विभागों और उन राज्य सरकारों से संपर्क किया, जो इस महामारी के असर से सीधे तौर से निपटने में जुटे थे.
हमने पूछा कि प्रधानमंत्री की घोषणा से पहले, क्या उन्हें पता था कि देश भर में एक साथ लॉकडाउन लगने वाला है? या फिर उन्होंने अपने विभाग को सरकार के इस क़दम के बाद की स्थिति से निपटने के लिए कैसे तैयार किया? उन्होंने किन क्षेत्रों में काम किया, जिससे कि वो लॉकडाउन को प्रभावी ढंग से लागू कर सकें और इसके विपरीत असर से भी निपट सकें?
बीबीसी ने अपनी व्यापक पड़ताल में पाया है कि लॉकडाउन के बारे में न तो पहले से किसी को कोई जानकारी थी और न ही हमें इसकी तैयारी किए जाने के कोई सबूत मिले हैं.
एक मार्च 2021 को हमने सूचना और प्रसारण मंत्रालय से संपर्क किया, जिससे कि वो इस ख़बर के बारे में सरकार का पक्ष रख सके. लेकिन अब तक, न तो सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, और न ही मंत्रालय के सचिव अमित खरे ने ही हमसे बातचीत के लिए हामी भरी है.
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