Hindi, asked by AngelicSweetie, 5 months ago

कोरोना से सीख सीख संवाद।​

Answers

Answered by gautamkumargupta692
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Answer:

कोरोना दे रही ढेरों सीख,

नए पाठ हर तारीख ।

रहें हमेशा हम सब स्वच्छ,

रोगों से फ़िर जाएंगे बच ।

ना घबराएं, करें सजग,

हड़बड़ाहट से रास्ता भटक ।

चकाचौंध छोड़ बनें सहज,

षड्यंत्र का हो तहस नहस ।

हाथ से बेशक ना मिलें हाथ,

हाथ जोड़ नमस्ते से संवाद ।

दिल से जाएं मिल सब दिल,

ईर्ष्या सहायता में हो तब्दील ।

आपस में करें सब सहयोग,

ना शिकवा गिला, बस विनोद ।

Answered by riya15955
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Answer:

कभी-कभी कुछ शब्द अनायास ही खूबसूरत हो जाते हैं! कुछ शब्द संभव हैं, अपने सामान्य अर्थ में इतने सुंदर न हों लेकिन किसी जगह भावना, गहरे प्रेम के कारण उनके अर्थ बहुत बदल जाते हैं. ऐसे किसी एक वाक्य, शब्द में हमें बहुत कुछ मिल जाता है. विश्व के महानतम उपन्यासकारों में से एक ओनोरे द बालज़ाक (1799-1850) के जीवन पर आधारित अमेरिकी लेखक चार्ल्स गोरहाम का उपन्यास 'वाइन ऑफ लाइफ' अनुपम रचना है. इसका अनुवाद 'जीवन मदिरा: बालज़ाक की जीवन गाथा' के रूप में आलोक श्रीवास्तव के 'संवाद' प्रकाशन से आया है. अनुवादक जंग बहादुर गोयल हैं.

बालक बालजाक के पिता एक रोज़ उसकी बहादुरी से खुश होकर उसे कहते हैं, 'मैं तुम्हारी मर्जी का कोई उपहार देना चाहता हूं, बोलो क्या लोगे? बालजाक ने कहा- वायलिन. पिता हैरानी से पूछते हैं, क्या तुम वायलिन बजा सकते हो? बालक बालजाक का उत्तर है- ' मैं सीख सकता हूं'!

#जीवनसंवाद: प्रेम और अकेलापन!

इस संवाद को थोड़ा गहराई में उतरकर समझना होगा. मैं यहां आकर इसलिए रुक गया था, क्योंकि ऐसा उत्तर मैंने संभवतः बहुत कम पढ़ा है. जिसमें एक बच्चा किसी प्रश्न के उत्तर में यह कहे कि 'मैं सीख सकता हूं!'. बच्चा ऐसी इच्छा प्रकट करे जिसके प्रति उसे कोई जानकारी न हो, और उसके बाद कहे कि 'मैं सीख सकता हूं! बालक बालज़ाक जब यह कह रहे हैं तो बहुत विचित्र स्थितियों के बीच कह रहे हैं. प्रेम की संभावना कम है. साथ खड़े लोग साथ होकर भी ठीक से साथ नहीं दे रहे. लेकिन बालज़ाक जीवन के प्रति आस्थावान हैं. यह बहुत ही शानदार उत्तर/भावना और अंतर्मन से चीजों को सीखने की प्रबलता है.

जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं. बच्चों की बात तो छोड़िए हम बड़े इस भावना से निरंतर दूर होते जा रहे हैं. कोरोना से जो आर्थिक संकट आया है, उसका मुकाबला मजबूत अंतर्मन से ही संभव है. 'मैं सीख सकता हूं' ऐसा भाव है, जिसे आत्मसात करके मुश्किल वक्त के लिए मन को सरलता से तैयार किया जा सकता है. दुनिया के बदलते वक्त खुद को नई चीज़ों के लिए तैयार करने से अच्छा कुछ नहीं!

इस समय बड़ी संख्या में नौकरियों पर संकट है. जैसे ही हमें हमारे काम में परिवर्तन के बारे में बताया जाता है, मन आशंका से भर उठता है. हमें तुरंत लगता है यह तो हमारे विरुद्ध तैयारी है. संभव है कि ऐसा हो लेकिन ऐसा नहीं भी हो सकता है. हमें ऐसा नहीं होने के लिए कुछ तो प्रयास करने ही होंगे. जितना हम बदलती जरूरतों के हिसाब से खुद को बदल सकते हैं उतना ही हम आंधियों का सामना कर पाएंगे. आंधियों के वक्त अक्सर पेड़ उनकी गति के हिसाब से तालमेल बैठाने की कोशिश करते हैं. हमें भी ऐसा ही करना है.

कोरोना संकट के शुरू होने के समय 'जीवन संवाद' को जोधपुर से एक पत्र मिला. जिसमें मालिनी राठी ने बताया कि निजी स्कूल ने उनकी सेवाएं समाप्त कर दी हैं. वह स्कूल में चित्रकला पढ़ाती थीं. उनका मन निराशा से भर गया. स्कूल के प्रति खिन्नता, नाराजगी थी. उन्होंने कहा- मैं खुद को संकट की ओर बढ़ता हुआ महसूस कर रही हूं. अब स्कूलों के दरवाज़े बंद हो गए हैं, नई नियुक्तियां नहीं हो रही हैं, क्या किया जाए! हमने उन्हें सुझाव दिया, क्यों नहीं आप ऑनलाइन पेंटिंग क्लासेस शुरू कर देती हैं. उन्होंने बताया कि वह बहुत अधिक ऑनलाइन से परिचित नहीं है. लेकिन इसी दौरान पता चला कि उनका बेटा है जो आठवीं कक्षा में है.

मैंने कहा आपका बेटा सब कर लेगा. बस भरोसा रख कर शुरू कीजिए. उन्होंने अपनी स्कूल की कक्षा में से ऐसे बच्चों/माता-पिता से बात की जो अपने बच्चों को चित्रकला की ओर भेजना चाहते हैं. इसके साथ ही कुछ ऐसे लोग भी मिले जिनके पास कोरोना में थोड़ा वक्त है, धीरे-धीरे ऐसे लोग जुटने लगे. मुझे यह कहते हुए प्रसन्नता हो रही है कि अब जबकि जुलाई की शुरुआत है, मालिनी जी के पास इतने बच्चे/ कला प्रेमी इकट्ठे हो गए हैं कि उनको स्कूल की याद नहीं आ रही!

मैं सीख सकता हूं का भाव, मैं कर सकता हूं से गहरा है. क्योंकि कर सकने में अनुभव शामिल होता है. जबकि सीखना उसके मुकाबले थोड़ा मुश्किल है. नई चीज़ को सीखने में समय/ कला से अधिक एक और चीज़ की जरूरत होती है, जिसे हम लगन के नाम से जानते हैं. जीवन के प्रति गहरी आस्था और अनुराग से हम मुश्किल परिस्थितियों का सामना कहीं अधिक आसानी से कर सकते हैं.

अवसाद, निराशा की ओर इन परिस्थितियों में बढ़ जाना सरल तो है लेकिन यह जीवन के विरुद्ध है. यह मनुष्यता के पक्ष में नहीं है. जीवन के पक्ष में नहीं है! इसलिए बहुत जरूरी है कि हम जीवन के पक्ष में खड़े हों. मुश्किल हैं तो आएंगी हीं, क्योंकि जीवन और मुश्किल एक ही नाव पर चलते हैं. जीवन है तो मुश्किल है, मुश्किल है तो इसका अर्थ है जीवन की संभावना है!

#जीवनसंवाद: जल्दी पाना और ऊबना!

जिन लोगों तक भी जीवन संवाद पहुंच रहा है उन सभी से मेरी गुजारिश है कि अपने को 'नए' के लिए तैयार कीजिए. चुनौती के लिए तैयार कीजिए. चुनौती का अभिनंदन कीजिए. बदली हुई जिंदगी और स्थितियों से निराश होने की जगह उनका स्वाद लीजिए. शुभकामना सहित...

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