Hindi, asked by teenaaggarwal2103, 3 months ago

कोरोना वायरस महामारी के कारण, हमारे देश के डॉक्टर चिकित्सा कर्मचारियों के साथ नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। डॉक्टरों और चिकित्सा रिपोर्टों में उनके योगदान के लिए आभार व्यक्त करते हुए एक पत्र।​

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Answered by SHREYASHJADHAV10
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Answer:

रविवार 22 मार्च को भारत में कई लोगों ने कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ जंग में सबसे आगे खड़े स्वास्थ्य कर्मियों के लिए तालियां और थालियां बजाईं. जिसके बाद देश के एक डॉक्टर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ये खुला ख़त लिखा.

हेलो मिस्टर प्रधानमंत्री,

राष्ट्रीय राजधानी में केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे एक अस्पताल के पीडीऐट्रिक आईसीयू में काम करने वाला डॉक्टर होने के नाते, मैं आपका ध्यान ज़मीनी हालात की ओर दिलाना चाहता हूं. एन95 तो भूल जाइए, हमारे पास सामान्य मास्क तक पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं. हमें अपने गाउन 2-3 दिन तक दोबारा इस्तेमाल करने पड़ रहे हैं, जो बिना गाउन के काम करने के ही बराबर है. सभी पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट की सप्लाई बहुत कम है. अगर देश की राजधानी के बीचों-बीच स्थित एक अस्पताल की हालत ये है तो हम देश के दूसरे हिस्सों के लिए क्या ही उम्मीद ही जा सकती है.

बात ये है कि अगर आप इस महामारी से निपटने में हेल्थ सिस्टम की मदद करना चाहते हैं तो 'बाल्कनी में खड़े होकर ताली बजाने' की जगह आपको उन्हें उपकरण देने चाहिए. मुझे 99% भरोसा है कि ये खुला ख़त आपतक नहीं पहुंचेगा, लेकिन फिर भी इस उम्मीद में ये ख़त लिख रहा हूं कि दूसरे डॉक्टर और आम नागरिक खड़े होकर ताली बजाने की जगह एक प्रभावी समाधान के लिए एकजुट होंगे. अगर आप स्वास्थ्य कर्मियों को वो चीज़ें नहीं दे सकते, जो उन्हें अपनी और देश की सुरक्षा के लिए चाहिए तो तालियां बजाकर उनका मज़ाक ना उड़ाएं.

Explanation:

mark as brainliest plz

Answered by Anonymous
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Answer:

कोरोना वायरस के डर जब लोग घरों से निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते, तब ऐसे भी 'जांबाज' हैं जो बिना भय के संदिग्धों और मरीजों की सेवा करने में जुटे हैं। इनमें डॉक्टर, सफाई कर्मचारी और पुलिस के जवान सबसे आगे हैं। कोरोना वायरस से निपटने में इनमें से किसी की भी भूमिका को कमतर नहीं आंका जा सकता। जिंदगियां बचाने के लिए ये 'जांबाज' दिनरात काम पर लगे हुए हैं। कई बार ऐसी भी स्थिति आ जाती है जब ये 'जांबाज' संक्रमित के सीधे संपर्क में आ जाते हैं। इसके बावजूद उनका न तो हौसला डिगा है और न ही बेहतर करने में कोई कमी आई है। ये सेना के जवानों की तरह सलामी के हकदार हैं।

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