Hindi, asked by mahadevsahu40, 7 months ago

कोरोनावायरस और मेरे बीच नाट्य के रूप में संवाद लेखन​

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Answered by as5123106
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कोरोना को लेकर चिकित्सा विज्ञान जहां उसका निदान खोजने में जुटा है वहीं सरकारें अपने लोगों को बचाने में. इस बीच लॉकडाउन से आतंकित आमजन अभी इसके असर को समझ नहीं पा रहे हैं, ऐसे में साहित्य जगत अपने ढंग से पाठकों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है. साहित्यकार यह जानते हैं कि इस भयावह दौर में इस महामारी के शारीरिक इलाज जितना ही महत्त्वपूर्ण है, उतना ही इसके प्रभाव से जूझ रहे लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की संरक्षा भी. लोग नकारात्मकता में न जाएं, अवसाद के शिकार न हों, इसके लिए साहित्य जगत पुरजोर कोशिश कर रहा है.

मार्च का महीना बीत गया. यह सिर्फ़ एक महीना नहीं था. लग रहा है यह एक महीने की तरह नहीं बल्कि किसी सदी की तरह बीता हो. कोरोना वायरस की महामारी से बचने के लिए लागू लॉकडाउन ने बहुत कुछ बदल दिया है, यह बदलाव निरंतर जारी है. बदलाव की एक धार साहित्य में देखने को मिल रही है. किताबों को लेकर लोगों में रूचि बढ़ी है. इसका कारण यह भी हो सकता है कि भागती-दौड़ती ज़िन्दगी में अचानक से आए इस ठहराव में किताबें सच्ची साथी बनकर उभरी हैं. ऐसा ही कुछ आभासी या डिजिटल दुनिया में देखने को मिल रहा है.

डिजिटल वाकई आने वाला कल है, जिसकी केवल सूचना व संचार की ही नहीं शब्दों की दुनिया में भी अपनी धमक है. इसने दूर रहकर लोगों को पास कर दिया है. दूरी फिज़िकल हैं लेकिन अहसास और प्यार कत्तई दूर नहीं. फेसबुक लाइव हो या यूट्युब लाइव इसके के जरिए लेखक, पाठकों से सीधे जुड़ रहे हैं. उनसे बातें कर रहे हैं. उनके सवालों का जवाब दे रहे हैं. उन्हें अपनी रचनाएं पढ़कर सुना रहे हैं. किसी के लिए यह सब नॉस्टैलजिक करने जैसा है तो किसी के लिए अपने चहेते-चेहरे को अपने फोन या लैपटॉप की स्क्रीन पर देखना रोमांच से भर दे रहा है.

इसीलिए इंडिया टुडे और आज तक समूह के साहित्य के लिए समर्पित डिजिटल चैनल 'साहित्य तक' ने 'कोरोना और किताबें' की एक शृंखला शुरू की है, जिसके तहत देश के कई नामीगिरामी लेखक खुद की पुस्तक या फिर अपनी किसी पसंदीदा पाठक की पुस्तक का अंश, कहानी, या कविता पाठ पढ़ रहे हैं. 'साहित्य तक' अपने सभी डिजिटल मंचों; फेस बुक, युट्युब और 'तक एप' पर इनका प्रसारण कर रहा है. खास बात यह कि 'साहित्य तक' के इस मंच से दिग्गज साहित्यकारों से लेकर उदीयमान लेखक तक अपनी या अपनी पसंदीदा रचनाओं को पढ़ रहे हैं. ऐसे लोगों में उदय प्रकाश, अश्विन सांघी, प्रेम चोपड़ा, दिव्य प्रकाश दुबे, शशांक भरतीया, ऋचा अनिरुद्ध, सत्या व्यास, गीताश्री, राजीवरंजन प्रसाद, निखिल सचान ललित कुमार, निलोत्पल मृणाल आदि शामिल हैं.

देश के कई बड़े प्रकाशन भी इस दिशा में काफी कुछ कर रहे हैं. राष्ट्रीय पुस्तक न्यास जहां कोरोना पर शोध आधारित किताबें लिखवा रहा है, वहीं वेस्टलैंड, एका, हिंदयुग्म और पेंग्विन जैसे प्रकाशक ई-पुस्तकों की बिक्री पर जोर दे रहे हैं. वाणी प्रकाशन ने ऑनलाइन साहित्य महोत्सव 2020 के नाम से एक लाइव कार्यक्रम शुरू किया है. इसी तरह राजकमल प्रकाशन समूह फेसबुक लाइव कर रहा है. 'साहित्य आजतक' से अपने अनुभव बताते हुए इस प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी का कहना है कि 'लोगों का घर पर रहना जरूरी है तभी हम महामारी की इस लड़ाई में जीत हासिल कर सकते हैं. फेसबुक लाइव के जरिए लोग लेखकों से सीधे जुड़ रहे हैं, उनसे कविताएं, कहानियां, शायरी, गीत सुन रहे हैं. किस्से कहानियों का हिस्सा बन रहे हैं. यह न केवल लोगों को साहित्य से जोड़ रहा है बल्कि उन्हें इस समय में दुनिया से जुड़े रहने का अहसास भी दे रहा है. यह सकारात्मक ऊर्ज़ा के संचार में सहायक है, जिसकी जरूरत अभी सबसे ज्यादा है.'

गीतकार स्वानंद किरकिरे जब सोशल मीडिया पर लाइव आए तो लोगों ने गानों की फरमाइश लगा दी. फरमाइश पूरी करते हुए उन्होंने, ओ री चिरइया, खोया खोया चाँद और बावरा मन गाकर सुनाया. स्वानंद ने कहा कि, 'इस समय अपना ध्यान रखिए, मस्त रहिए और खूब पढ़िए.' मशहूर एक्टर और नाट्य लेखक सौरभ शुक्ला का कहना था कि उनका मन बात करने को तरसता है. इस क्वारंटाइन में एक ही चीज़ खलती है कि कोई बात करने को नहीं मिलता. इसलिए जब मुझे अपनी किताब के प्रकाशक ने मौका दिया तो मैं फौरन इसके लिए राज़ी हो गया. उन्होंने यह भी कहा कि वह कभी कॉफ़ी नहीं बना पाते थे, पर इस लॉकडाउन में कॉफ़ी बनाना सीख लिया है.

राजकमल से ही जुड़ी लंदन निवासी लेखिका अनुराधा बेनीवाल ने वहां के लॉकडाउन के हाल साझा किए. उन्होंने बताया कि लंदन में आप किस समय घरेलू सामान लेने बाहर जा सकते हैं और क्या-क्या चीज़ें हैं जो आसानी से मिल रही हैं. उन्होंने अपनी किताब 'आज़ादी मेरा ब्रांड' से कुछ हिस्सा पढ़कर सुनाया. अनुराधा फिलहाल फेसबुक लाइव के जरिए चेस सिखाने का काम भी कर रही हैं. साहित्यकार हृषीकेश सुलभ ने राजकमल के फेसबुक लाइव के दौरान जहां गरीब, कामगार तबके के प्रति संवेदना प्रकट करते हुए कहा कि प्रवासी मजदूरों को जिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ रहा है वो बहुत दुखी करने वाला है. यह तनाव का क्षण है और उम्मीद है कि जल्द ही सबकुछ ठीक हो जाएगा. उन्होंने अपने नए उपन्यास 'अग्निलीक' से अंश पढ़ कर सुनाया.

साहित्यकार और खान-पान विशेषज्ञ पुष्पेश पंत ने तो अपने प्रशंसकों से अपने बचपन की याद भी शेयर की और कहा कि पहाड़ी होने के नाते मुझे ठंड के चार-पांच महीने घर में बंद रहकर बिताने का अनुभव है. जब बाहर बहुत ठंड होती थी और बर्फ़ पड़ती थी. कहीं आ जा नहीं सकते थे. कुछ-कुछ ऐसा ही है यह 21 दिन का लॉकडाउन या एकांतवाश. ऐसे में इसे जितना हंसी-खुशी बिताएंगे यह उतना सुकून से कट जाएगा. पुष्पेश, तो रोजाना अपने प्रशंसकों से रूबरू हो रहे हैं. राजकमल के फेसबुक पेज पर तो वह शानदार व्यंजनों, उसको बनाने की विधि, स्वाद और उसकी विविधताएं लोगों से साझा करते हैं. अबतक वो भिन्न तरह की खिचड़ी, बासी भात के महत्व, बैंगन के भिन्न व्यंजन और भांग की चटनी के बारे में कई रोचक किस्से साझा कर चुके हैं.

Answered by sakshisingh27
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Explanation:

राधेश्याम---

जीवन हरण, अमंगल करण ओ वायरस महाराज,

देख रहा सम्पूर्ण जगत तुम्हारी लीला आज ।

तुम्हारी लीला आज सम्पूर्ण विश्व को है डराती,

तुम्हारे लक्षण हैं दिख रहे बड़े ही उत्पाती ।

आखिर लोगों ने किस गलती का परिणाम पाया,

कि विनाश करने तू इस धरती पर आया ।

कोरोना----

आप लोगों की बदौलत ही यहाँ पर हूं आया,

आपने प्रकृति से छेड़छाड़ का परिणाम है पाया ।

आधुनिकता के चक्कर में हद तोड़ दी सारी,

जिस प्रकृति का संसार रहा अब तक आभारी ।

एक बार फिर प्रकृति ने आपको चेताया है,

आपने अपनी ही गलती का अंजाम पाया है ।

अजय कुमार सैनी

लक्ष्मी नगर बिड़ला मंदिर मथुरा ( उत्तर प्रदेश )

- हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।

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