कारखानों में दुर्घटनाएं क्या है?
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कारखानों में काम करते समय श्रमिक को जो शारीरिक चोट या हानि होती है जिसमें उसका अंग भंग हो जाता है और वह आंशिक व पूर्ण रूप से नकारा हो जाता है, इसी को दुर्घटना कहते है। एक कुशल मजदूर एक अच्छे खिलाड़ी की तरह अपने कार्य को सुरक्षित ढंग से सम्पन्न करता है। वह जोखिम व दुर्घटनाओं की संभावनाओं से बचने का प्रयत्न करता है क्योंकि उसे उत्पादन हेतु बड़ी जटिल एवं महंगी मशीनों पर कार्य करना पड़ता है। अत: दुर्घटना की सम्भवना बनी रहती है। सुरक्षा अधिनियम के अनुसार दुर्घटना की जिम्मेदारी नियोजकों पर डाली गयी है। दुर्घटना प्राय: थोड़ी सी लापरवाही के कारण होती है जैसे भोपाल गैस दुर्घटना। थोड़ी सी गलती से कारीगर का जीवन खतरे में पड़ सकता है और उसकी दुर्घटना में मृत्यु हो सकती है। जोकि आश्रितों के लिए बहुत बड़ा अभिशाप बन जाता है। अत: दुर्घटना की थोड़ी सी भी संभावना होने पर काम तुरंत बंद कर देना चाहिए और सुरक्षा के सभी प्रबंध करने चाहिए। सुरक्षा हेतु लगाये गये सभी यंत्रों को अच्छी अवस्था में बनाये रखना चाहिए
औद्योगिक मनोविज्ञान में 'दुर्घटना' शब्द का उपयोग विशेष अर्थों में किया जाता है। कार्यस्थल दुर्घटनाएँ या 'औद्योगिक दुर्घटनाएं' सिर्फ वे होती हो जो कार्य परिस्थिति तथा कार्य संपादन प्रणालियों में कतिपय हुई त्रुटियों के कारण घटित होती है।[1][2] दुर्घटना शब्द को परिभाषा में बांधना कठिन कार्य है, फिर भी ये ऐसी अप्रिय दुर्घटनाएं होती हो जो अप्रत्याशित होती हैं। मनोवैज्ञानिकों का मत है कि दुर्भिक्ष, अकाल, संक्रामक रोग, भूकंप आदि प्रत्याशित हैं और इनमें ही जानमाल की क्षति होती है, फिर भी इन्हें दुर्घटना नहीं कहा जा सकता है। उद्योगों के संबंध में इन विचारों को उपयुक्त नहीं माना जा सकता है।
औद्योगिक दुर्घटनाएं उद्योग में कार्यरत व्यक्तियों तक ही सीमित होती है, जिनका संबंध यंत्र-चालन तथा परिवहन-चालन से होता है। इन दुर्घटनाओं की उत्पत्ति कार्य तथा कार्यकर्त्ता से संबंधित दोषपूर्ण अवस्थाओं के कारण होती है।
दुर्घटना की परिभाषा कार्यों एवं परिस्थितियों के अनुरूप बदलती रहती है। आधुनिक मनोविज्ञानी दुर्घटना को नए अंदाज से देखते हैं। उनका मत है कि अलग-अलग देशों में श्रम कानून भी अलग-अलग हैं इसलिए दुर्घटना की परिभाषा भी बदलती रहती है