Hindi, asked by sudhakarli2579, 1 year ago

किसी अन्य कवि द्वारा रचित विरह वर्णन की दो कविताएँ चुनकर लिखिए और अपने अध्यापक को दिखाइए।

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Answered by Anonymous
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google par search kar li bhai

Answered by namanyadav00795
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"विरह-प्रसंग" श्याम लाल शर्मा

पीड़ा मन की कत कहूँ, सबद न सूझे कोय ।

प्रीतम सुधि महँ मन दुखी, चुपके-चुपके रोय ।।

तबहिं ते बौरई भई, जब ते बिछुरे मीत ।

झूठे सब लागन लगे, धरम करम अरु प्रीत ।।

 

आग लगी कैसी मन हिं, नाहीं बुझत बुझाय ।

बुझत मिलत हि साँईं के, जौं या मन मर जाय ।।

विरहा बिषधर तन डसै, डंक रह्यो नित मार ।

पिय सुधि संजीवन जड़ी, या बिष को उपचार ।।

 

जब-जब पिय की सुध जगै, बिसरौं निज को भान ।

नहिं सुधि भूख-पियास की, नहिं सुख-दुख को ग्यान ।।

अखियन जल झर-झर बहे, देखत पिय की बाट ।

पिस रहि आस-निरास की, चकिया बिच द्वै पाट ।।

 

विरह पीड़ मन महँ बसी, पल-पल रहि तड़पाय ।

वेद-वैद हारे सभै, पिया मिलन ते जाय ।।

 

मन पपिहा पी-पी करै, हरदम रहै उदास ।

ना जाने कब बुझैगी, पिया मिलन की प्यास ।।

 

पिया कृष्ण मन राधिका, कृष्ण-कृष्ण कहि जाय ।

विरह आग महँ जल रह्यो, मिलन हि नीर बुझाय ।।

 

नैनन नित नीरन झरैं, मन महँ नाहीं चैन ।

एक तिहारी चाह महँ, राह तकूं दिन-रैन ।।

काव्य संग्रह  "नीहार", महादेवी वर्मा

जो   तुम   आ   जाते   एक   बार

कितनी   करूणा   कितने   संदेश   पथ   में   बिछ   जाते   बन   पराग,

गाता   प्राणो   का   तार - तार   अनुराग   भरा   उन्माद   राग,

छा   जाता   जीवन   में   बसन्त   लुट   जाता   चिर   संचित   विराग,

आंखे   देती   सर्वस्ववार

सब   बुझे   दीपक   जला   लूं

घिर   रहा   तम   आज, दीपक   रागिनी   अपनी   जला   लूं

चाहता   है   यह   पागल   प्यार

अनोखा   एक   नया   संसार

कलियों   के   उच्छवास   शून्य   में   ताने   एक   वितान

तुहिन   कणों   पर   मृदु   कम्पन   से   सेज   बिछादे   गान

अली   कैसे   उनको   पाऊं ?

वे   आंसू   बन   कर   मेरे

इस   कारण   ढुल - ढुल   जाते

इन   पलकों   के   बंधन   में

मैं   बांध -  बांध   पछताऊं

विरह   का   जलजात   जीवन ,  विरह   का   जलजात

वेदना   में   जन्म   करूणा   में   किया   आवास

अश्रु   चूमता   दिवस   इसका   अश्रु    गिनती   रात

आंसूओ   का   कोष   उर ,  दृग   अश्रु   की   टकसाल,

तरल   जब   कण   से   बने   घन   सा   क्षणिक   मृदुगात

नैनों   में   आंसू   है,

और   हृदय   में   सिहरन   है,

पुलक - पुलक   उर   सिहर - सिहर   तन,

आज   नयन   आते   क्यों   भर - भर

कैसे   संदेश   प्रिय   पंहुचाती ?

दृग   जल   की   सिल   मसि   है   अक्षय,

मसि   प्याली   झरते   तारक   दृय

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