किसी भी राग की पकड़ लिखिए।
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राग भैरवी के बारे में-
''''रे ग ध नि कोमल राखत, मानत मध्यम वादी।
प्रात: समय जाति संपूर्ण, सोहत सा संवादी॥''''
इस राग की उत्पत्ति ठाठ भैरवी से मानी गई है। इसमें रे, ग, ध और नि, कोमल लगते हैं और म को वादी तथा सा को संवादी स्वर माना गया है। गायन समय प्रात:काल है।
मतभेद- इस राग में कुछ संगीतज्ञ प सा किंतु अधिकांश म-सा वादी संवादी मानते हैं।
विशेषता-
१.ये एक अत्यंत मधुर राग है और इस कारण इसे सिर्फ़ प्रात: समय ही नहीं बल्कि हर समय गाते बजाते हैं। सभी समारोहों का समापन इसी राग से करने की प्रथा सी बन गयी है।
२.आजकल इस राग में बारहों स्वर प्रयोग किये जाने लगे हैं, भले ही इसके मूल रूप में शुद्ध रे, ग, ध, नि लगाना निषेध माना गया है।
३.इससे मिलता जुलता राग है- बिलासखानी तोड़ी।
४.भैरवी ठुमरी अंग का राग है ,इसकी प्रकृति चंचल और क्षुद्र है,इसकी खूबसूरती बढानें के लिए इसमें सप्तक के बारहों स्वरों का प्रयोग किया जाता है |
५ .गीत ग़ज़ल भजन इत्यादि सुगम संगीत शैलियों के साथ उपशास्त्रीय संगीत की विधाओं जैसे ठुमरी टप्पा दादरा के लिए भी भैरवी उपयुक्त राग है जबकि ख्याल गायकी इस राग कम देखी जाती है |
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