किस भू राजस्व व्यवस्था में भूमि का मालिक जमींदार को माना गया है
1- स्थायी बंदोबस्त
2- महलवाडी पद्धति
3- रैयतवाड़ी भू राजस्व व्यवस्था
4- उपयुक्त में से कोई नहीं
Answers
रैयतवाड़ी व्यवस्था १७९२ र्इ. में मद्रास पे्रसीडेन्सी के बारामहल जिले में सर्वप्रथम लागू की गर्इ। थॉमस मुनरो १८२० र्इ. से १८२७ र्इ. के बीच मद्रास का गवर्नर रहा। रैयतवाड़ी व्यवस्था के प्रारंभिक प्रयोग के बाद मुनरो ने इसे १८२० र्इ. में संपूर्ण मद्रास में लागू कर दिया। इसके तहत कम्पनी तथा रैयतों (किसानों) के बीच सीधा समझौता या सम्बन्ध था। राजस्व के निधार्रण तथा लगान वसूली में किसी जमींदार या बिचौलिये की भूमिका नहीं होती थी। कैप्टन रीड तथा थॉमस मुनरो द्वारा प्रत्येक पंजीकृत किसान को भूमि का स्वामी माना गया। वह राजस्व सीधे कंपनी को देगा और उसे अपनी भूमि के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता था लेकिन कर न देने की स्थिति में उसे भूमि से वंचित होना पङता था। इस व्यवस्था के सैद्धान्तिक पक्ष के तहत खेत की उपज का अनुमान कर उसका आधा राजस्व के रूप में जमा करना पड़ता था।रैयत(कृषक)+वाड़ी(बंदोबस्त)
रैयत(कृषक)+वाड़ी(बंदोबस्त)रैयतवाड़ी दो शब्दों के मेल से बना है, जिसमें रैयत का आशय है, किसान एवं वाड़ी का आशय है, प्रबंधन अर्थात किसानों के साथ प्रबंधन। दूसरे शब्दों में रैयतवारी व्यवस्था ब्रिटिश कंपनी द्वारा प्रचलित एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें राज्य या सरकार किसानों के साथ प्रत्यक्ष तौर पर भू राजस्व का प्रबंधन करती है। यह मद्रास, बंबई, आसाम, एवं सिंध का क्षेत्र में यह व्यवस्था प्रचलित थी अर्थात भारत में ब्रिटिश सम्राज्य के कुल भूभाग के 51% भूमि पर यह व्यवस्था लागू थी। रैयतवाड़ी व्यवस्था के प्रचलन के संदर्भ में मूल रूप से दो विचारधाराएं प्रस्तुत की जाती है पूंजीवादी विचारधारा उपयोगितावादी विचारधारा
रैयत(कृषक)+वाड़ी(बंदोबस्त)रैयतवाड़ी दो शब्दों के मेल से बना है, जिसमें रैयत का आशय है, किसान एवं वाड़ी का आशय है, प्रबंधन अर्थात किसानों के साथ प्रबंधन। दूसरे शब्दों में रैयतवारी व्यवस्था ब्रिटिश कंपनी द्वारा प्रचलित एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें राज्य या सरकार किसानों के साथ प्रत्यक्ष तौर पर भू राजस्व का प्रबंधन करती है। यह मद्रास, बंबई, आसाम, एवं सिंध का क्षेत्र में यह व्यवस्था प्रचलित थी अर्थात भारत में ब्रिटिश सम्राज्य के कुल भूभाग के 51% भूमि पर यह व्यवस्था लागू थी। रैयतवाड़ी व्यवस्था के प्रचलन के संदर्भ में मूल रूप से दो विचारधाराएं प्रस्तुत की जाती है पूंजीवादी विचारधारा उपयोगितावादी विचारधारास्मरणीय है, कि रैयतवाड़ी व्यवस्था के पीछे सबसे अधिक पूंजीवादी विचारधारा तथा पूंजीवादी विचारधारा का मानवीय चेहरा उपयोगितावादी विचारधारा मुख्य तौर पर जिम्मेदार था। इस विचारधारा का केंद्रीय मान्यता था की भूमि के ऊपर उस वर्ग का स्वामित्व होना चाहिए। जो उस भूमि में अपना श्रम लगाकर फसलों का उत्पादन करता है और यही वजह है,की अर्थशास्त्री रिकार्डो के सिद्धांत से प्रभावित होकर जमींदारों को गैर उत्पादक वर्ग मानते हुए किसानों को ही भूमि का मालिक स्वीकार किया गया |
रैयत(कृषक)+वाड़ी(बंदोबस्त)रैयतवाड़ी दो शब्दों के मेल से बना है, जिसमें रैयत का आशय है, किसान एवं वाड़ी का आशय है, प्रबंधन अर्थात किसानों के साथ प्रबंधन। दूसरे शब्दों में रैयतवारी व्यवस्था ब्रिटिश कंपनी द्वारा प्रचलित एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें राज्य या सरकार किसानों के साथ प्रत्यक्ष तौर पर भू राजस्व का प्रबंधन करती है। यह मद्रास, बंबई, आसाम, एवं सिंध का क्षेत्र में यह व्यवस्था प्रचलित थी अर्थात भारत में ब्रिटिश सम्राज्य के कुल भूभाग के 51% भूमि पर यह व्यवस्था लागू थी। रैयतवाड़ी व्यवस्था के प्रचलन के संदर्भ में मूल रूप से दो विचारधाराएं प्रस्तुत की जाती है पूंजीवादी विचारधारा उपयोगितावादी विचारधारास्मरणीय है, कि रैयतवाड़ी व्यवस्था के पीछे सबसे अधिक पूंजीवादी विचारधारा तथा पूंजीवादी विचारधारा का मानवीय चेहरा उपयोगितावादी विचारधारा मुख्य तौर पर जिम्मेदार था। इस विचारधारा का केंद्रीय मान्यता था की भूमि के ऊपर उस वर्ग का स्वामित्व होना चाहिए। जो उस भूमि में अपना श्रम लगाकर फसलों का उत्पादन करता है और यही वजह है,की अर्थशास्त्री रिकार्डो के सिद्धांत से प्रभावित होकर जमींदारों को गैर उत्पादक वर्ग मानते हुए किसानों को ही भूमि का मालिक स्वीकार किया गया |इस पद्धति के तहत किसानों के साथ भू राजस्व कर निर्धारण भी रिकार्डो के सिद्धांत पर ही आधारित था जैसे:- कुल उत्पादन- किसान का कुल लागत= शेष और उस शेष पर राज्य एवं किसानों के बीच फसल से प्राप्त आय का बंटवारा|
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