Political Science, asked by kumarsuraj16494, 10 months ago

कैसे भारतीय संविधान के अंतर्गत धर्मवाद और जातिवाद देश को कमजोर करती है।

Answers

Answered by ranyodhmour892
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Answer:

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Explanation:

वैसे कमाल के लोग रहे होंगे, जिन्होंने हमारे संविधान (कानून) को जन्म दिया? आप गौर करिए तो पता चलेगा, देश का कानून खुद अजीबो-गरीब स्थिति पैदा करता है, कई मुद्दों पर अपनी ही बात को अगले किसी पन्ने में काट देता है।

सबसे पहला और बड़ा भेद समझ लीजिए

संविधान कहता है कि भारत एक धर्मनरपेक्ष देश है, इसका सरल भाषा में अर्थ होता है, किसी तरह के धार्मिक या जातिगत भेदभाव को ना मानने वाला देश। फिर वही संविधान मौलिक अधिकार में कहता है,इसका सरल भाषा में अर्थ होता है, कोई भी किसी भी तरह के धार्मिक और जातिगत चोले को जितना चाहे ओढ़ सकता है, उसको कोई कानून रोक नहीं सकता है।

फिर वही संविधान उन्हीं लोगों को अपने धार्मिक, जातिगत बातों को मानने, उन्हें पूजने, उन्हें उत्सव मानने की आज़ादी भी देता है।

दूसरा बड़ा भेद देखिए, संविधान कहता है,फिर वही संविधान उन्हीं लोगों को अपने धार्मिक, जातिगत बातों को मानने, उन्हें पूजने, उन्हें उत्सव मानने की आज़ादी भी देता है।

यह दो भेद मात्र मैंने बताए हैं, ऐसे आपको बहुत सारे भेद मिल जाएंगे। अब सवाल यह है, क्या संविधान निर्माताओं को यह पता था कि इस देश में जातिगत भेदभाव मिटाया नहीं जा सकता है? दरअसल, धर्मवाद और जातिवाद के कारण अंदरुनी विद्रोह सदियों से भारत देखता आ रहा था, उसे भी सत्ता को दबाना था, इसलिए बीच का रास्ता निकाल लिया गया, जिससे सभी तरह के लोग खुश हो जाए

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Answered by PravinRatta
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हमारे संविधान ने देश के सभी व्यक्तियों को एक समान माना है। भले ही संविधान के अनुसार सब्जी नागरिकों कि मौलिक अधिकार दिए गए हैं लेकिन इसके बावजूद संविधान के अनुसार सब एक हैं।

संवैधानिक रूप से कोई भी व्यक्ति अपने अनुसार धर्म को चुन सकता है लेकिन इस धर्मवाद और जातिवाद से संविधान कमजोर नहीं होना चाहिए।

जातिवाद के कारण लोगों में एक दूसरे के प्रति घृणा हो जाती है जिसके कारण समाज में विभाजन हो जाता है। यह संविधान के अनुसार सही नहीं है क्योंकि संविधान के अनुसार देश की किसी धर्म और जातियों के आधार पर विभाजन नहीं किया जा सकता है।

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