Social Sciences, asked by sanju27747, 5 months ago

किसी एक प्रांतिय दल का उदाहरण देते हुए प्रांतीय दल की परीभाषा लिखो।​

Answers

Answered by anitajoshi0905
0

Answer:

ORF

Home Hindi post

क्षेत्रीय दल और भारतीय राजनीति

27 October 2016

SATISH MISRA

भारतीय राजनीति के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं क्षेत्रीय दल

Politics,Regional

भारत में समय-समय पर अलग-अलग क्षेत्रीय पार्टियों का गठन होता रहा है और ये देश के संसदीय लोकतंत्र में अपनी भूमिका निभाती रही हैं। शिरोमणि अकाली दल और जम्मू एंड कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस जैसी कुछ पार्टियां तो 1947 में देश के आजाद होने से भी पहले गठित हो गई थीं। लेकिन ज्यादातर दूसरी क्षेत्रीय पार्टियां देश के आजाद होने के बाद ही गठित हुई हैं।

क्षेत्रीय दलों की श्रेणी में रखी जाने वाली पार्टियों का विकास खास तौर पर 1967 के बाद तेज हुआ, जब देश के स्वतंत्रता संग्राम में खास भूमिका निभाने वाली इंडियन नेशनल कांग्रेस पार्टी की देश के मतदाताओं पर पकड़ ढीली होने लगी।

इस समय लगभग चार दर्जन राज्य स्तरीय पार्टियों को चुनाव आयोग की मान्यता हासिल है और लगभग दो दर्जन ऐसी हैं जिन्हें अब तक मान्यता नहीं मिली है। इनमें से कई अपने राज्य में सत्ता में हैं तो कुछ अपनी बारी का इंतजार कर रही हैं। क्षेत्रीय पार्टियों ने लोकप्रियता हासिल कर राष्ट्रीय पार्टियों के सामने चुनौती पेश कर दी है। इन्होंने राष्ट्रीय पार्टियों की ओर से क्षेत्र या राज्य विशेष की राजनीतिक और आर्थिक उपेक्षा को अपना आधार बनाया और आगे बढ़ीं।

सबसे पुरानी क्षेत्रीय पार्टियों में शामिल शिरोमणि अकाली दल की स्थापना 1920 में धार्मिक संगठन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक सिमिति (एसजीपीसी) ने की ताकि ब्रिटिश हुकूमत के दौरान अविभाजित पंजाब में सिखों की मुख्य प्रतिनिधि बन सके।

इस समय क्षेत्रीय पार्टियां आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, नगालैंड, ओडिशा, पंजाब, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में अपने अकेले दम पर या राष्ट्रीय पार्टी अथवा किसी और पार्टी के साथ मिल कर शासन कर रही हैं।

इन सभी क्षेत्रीय पार्टियों की एक खासियत यह है कि ये सभी एक ऐसे नेता के इशारे पर चलती हैं जिसकी सत्ता को पार्टी के अंदर कोई चुनौती नहीं दे सकता। संक्षेप में कहें तो इन्हें कोई एक नेता और उसके विश्वासपात्र चला रहे हैं। उनके परिवार के सदस्य और रिश्तेदारों का भी पार्टी के काम-काज में खासा दखल रहता है।

जो पार्टियां किसी वैचारिक आधार पर गठित हुई हैं, उन्हें भी समय के साथ व्यक्तिगत जागीर और व्यक्तिगत हितों की रक्षा का साधन बना दिया गया है।

इसलिए सामान्य तौर पर ऐसी पार्टियों का अस्तित्व भी उनका संचालन करने वाले नेता के जीवन काल से काफी नजदीक से जुड़ा है।

क्षेत्रीय संगठनों की एक और खास बात यह है कि परिवार के सदस्य, नजदीकी रिश्तेदार और मित्र पार्टी के काम का संचालन करते हैं और उनमें से ही एक उसके नेता की विरासत को उसके जीवन काल के दौरान या उसके बाद संभाल लेता है।

हाल के दिनों में समाजवादी पार्टी (सपा) के सबसे ताकतवर नेता और उनके बेटे के बीच लंबे समय से चल रहे संघर्ष के खुल कर सामने आ जाने की वजह से यह पार्टी चर्चा में है। इसलिए क्षेत्रीय दलों की विडंबना और इनके भविष्य को समझने के लिए सपा को नजदीक से समझना दिलचस्प होगा।

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश पर सपा का 2012 से शासन है और 1992 में इसके गठन के बाद से यह लगभग एक दशक तक सत्ता में रही है। इसने केंद्र में भी सत्ता में साझेदारी की है।

पार्टी का गठन उत्तर प्रदेश के तीन बार के मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री रह चुके मुलायम सिंह यादव ने जनता दल से अलग हो कर किया था। 1990 के दशक की शुरुआत में मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद मुलायम का प्रभाव काफी बढ़ा। इससे पहचान की राजनीति को भी खास कर उत्तर भारत में काफी बढ़ावा मिला था।

मुलायम 1989 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और इस पद पर पूरे एक साल और 201 दिन तक रहे। 1991 के आम चुनाव में जनता दल की हार के बाद उन्हें यह कुर्सी छोड़नी पड़ी। उसके बाद उन्होंने सपा की स्थापना की और दो बार मुख्यमंत्री बने।

इस साल 22 नवंबर को वे 78 वर्ष के हो जाएंगे और कहा जा रहा है कि अब वे उतने स्वस्थ नहीं रहते। पार्टी के अंदर पिछले कुछ समय से वर्चस्व की लड़ाई कभी खुल कर, तो कभी दबे-छुपे चल ही रही है लेकिन जितना खुल कर यह अब सामने आई है, इतनी कभी नहीं आई थी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव के गुट मुलायम सिंह के बाद के युग के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। अखिलेश जहां मुलायम के सबसे बड़े बेटे हैं, वहीं शिवपाल उनके छोटे भाई हैं।

पार्टी में खुद अपनी सत्ता को चुनौती मिलती देख कर और पार्टी के भविष्य को ध्यान में रखते हुए मुलायम सिंह ने दखल दिया और एक ऐसा रास्ता दिया जो उनकी नजर में राजनीतिक रूप से उनको प्रासंगिक भी बनाए रखता और अगले चुनाव में सत्ता बनाए रखने की पार्टी की उम्मीद को भी जिंदा रखता।

Similar questions