किसी एक विषय पर 100 से 150 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए। (क) कोरोना का मानव जीवन पर प्रभाव (ख) ऑनलाइन शिक्षा (ग) भारत विविध संस्कृतियों का देश
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कोरोना महामारी जहां पूरे विश्व में अपना कहर बरपा रही है, वहीं प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ से यह मानवता को सचेत करने का भी मौका दे रही है। इस महामारी में प्राकृतिक आपदाओं का लगातार एक साथ आना चिंता का विषय तो है ही, लेकिन हमारे लिए एक सीख भी है, जो हमें संकेत कर रही है कि अगर हम अभी न संभले तो कभी नहीं संभल सकते।
इस विषय पर लिखने से पहले मेरे मन में बहुत से विचार आये। जिनके सवालों के जवाब ढूंढ पाना मुश्किल हो गया था कि आखिर कैसे अचानक दुनिया की अर्थव्यवस्था जहां अपनी गति से आगे बढ़ रही थी, वहीं उस पर लॉकडाउन की ऐसी चोट पड़ी कि वह एकदम से धराशाही हो गई।
जब चीन के वुहान शहर से शुरू हुए कोरोना वायरस की ख़बरों को देखते- सुनते और पढ़ते थे तो लगता था कि यह कोई छोटी-मोटी बीमारी होगी, जो जल्दी ही नियंत्रण में कर ली जाएगी। लेकिन जैसे-जैसे इस वायरस ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लेना शुरू किया तो लगा कि ये बीमारी नियंत्रण के बाहर है। लेकिन अब यह बीमारी पूरे भारत में अपने पैर पसार चुकी है।
30 जून 2020 के अपराह्न 7.30 बजे तक भारत में 5 लाख 85 हज़ारसे अधिक लोग संक्रमित हुए और मौतों की संख्या का आंकड़ा 17 हज़ार के पार जा पहुंचा।
Worldometer वेबसाइट के आंकड़े बताते हैं कि कोरोना संक्रमित देशों की सूची में टॉप पर क्रमशः अमेरिका, ब्राज़ील, रूस और भारत हैं। अमेरिका और ब्राज़ील देशों की हालात बाकी दोनों देशों की तुलना में बहुत खराब है।
भारत में 24 मार्च 2020 से लगने वाले लॉकडाउन के चार चरणों के साथ ही अनलॉक 1.0 के 100 दिन 4 जुलाई को पूरे हुए। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर हमने लॉकडाउन और अनलॉक के दौरान अब तक क्या खोया और पाया!
भारत में संपूर्ण लॉकडाउन का असर पूरे देश में देखने को मिला, जिसे आंकड़ों के ज़रिए समझने की ज़रूरत है कि भारत में लॉकडाउन के दौरान जो मृत्यु दर 15 अप्रैल 2020 को 3.41 फीसदी थी, वहीं 01 जून 2020 तक घटकर वह 2.82 फीसदी तक आ गई। लेकिन इसे अगर पूरी दुनिया के हिसाब से समझा जाये, तो यह प्रति एक लाख संक्रमण पर मृत्यु दर 5.97 फीसदी रही, वहीं फ्रांस में 18.9 फीसदी, इटली में 14.3 फीसदी, यूके में 14.12 फीसदी, स्पेन में 9.78 फीसदी और जबकि बेल्जियम में 16.21 फीसदी लॉकडाउन के दौरान हुई।
प्रथम चरण के लॉकडाउन में भारत में मरीजों के ठीक होने की दर 7.1 फीसदी थी, जबकि वहीं चौथे चरण में यह दर 41.61 फीसदी हो गई यानी ये आंकडे कहीं न कहीं देश के प्रति एक आत्मविश्वास पैदा करने वाले रहे हैं।