किसान आंदोन 2020 पर निबंध (200)
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आंदोलनकारी किसान संगठन केंद्र सरकार से तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं और इनकी जगह किसानों के साथ बातचीत कर नए कानून लाने को कह रहे हैं. किसानों की 5 प्रमुख मांगें इस तरह हैं… – तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाए क्योंकि ये किसानों के हित में नहीं है और कृषि के निजीकरण को प्रोत्साहन देने वाले हैं.
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भारत में वक्त-बे-वक्त होने वाली सामाजिक उथल-पुथल में किसानों की भूमिका भले ही गौण रही हो, लेकिन भारतीय इतिहास के झरोखे में नजर दौड़ाएंगे, तो आपको पता चलेगा कि अपने ही देश में आजादी के पहले और आजादी के बाद किसानों के कई ऐसे आंदोलन हुए, जिसने यहां के हुक्मरानों की चूलें तक हिला के रख दी. खासकर, यदि हम आजादी के पहले की बात करें, तो भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आंदोलन की शुरुआत की चंपारण के नीलहा किसान और गुजरात के खेड़ा के किसानों की समस्याओं से हुई. एक तरह से देखेंगे, तो बिहार के चंपारण के नीलहा आंदोलन से ही महात्मा गांधी का भारत की आजादी की लड़ाई में पदार्पण भी हुआ.
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कृषि से संबंधित विवादित विधेयक इन दिनों ख़ूब सुर्ख़ियाँ बटोर रहे हैं. कई राज्यों के किसान आंदोलन के मूड में हैं और पिछले कई दिनों से उनका विरोध प्रदर्शन जारी है.
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के एक प्रमुख सहयोगी अकाली दल की एकमात्र मंत्री हरसिमरत कौर ने तो इसके विरोध में मंत्रिपद भी छोड़ दिया. लेकिन सरकार इससे टस से मस नहीं हुई और विधेयक दोनों सदनों में हंगामे के बीच पास हो गया.
विपक्षी पार्टियों और कई किसान संगठनों का आरोप है कि इससे न्यूनतम समर्थन मूल्य पर असर पड़ेगा, वहीं सरकार इन आरोपों को ख़ारिज करती है. सरकार का कहना है कि कृषि बिल में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और अनाज मंडियों की व्यवस्था को ख़त्म नहीं किया जा रहा है, बल्कि किसानों को सरकार विकल्प दे रही है.
भारत में किसान आंदोलनों का लंबा इतिहास रहा है. देश में सहजानंद सरस्वती जैसे किसान नेता हुए हैं, जिन्होंने ब्रिटिश राज में यूनियन का गठन किया था.
लेकिन राजनीतिक दलों पर ये भी आरोप लगते हैं कि समय समय पर सरकार उन्हें लुभाने की कोशिश तो करती है, लेकिन कभी उन्हें वोट बैंक नहीं मानती.
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