Hindi, asked by tainyjaingmailcom, 1 year ago

'किसानों की समस्याएँ' विषय पर एक फीचर लिखिए।

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Answered by Anonymous
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‘बस हमरो गल्लो भर सस्तो हे बाकीं सभै चीजें महंगी हो रई हैं।’ 


कृषि प्रधान देश के अन्नदाता की आँखों के आंसू तंत्र और राजनीति को भले ही न दिख रहे हों, लेकिन वो अनवरत बह रहे हैं। मेरे गांव के छोटे किसान परमू की वो भरी आँखें मैं भुला नहीं पा रहूँ। "सोयाबीन चौपट हो गई, मूंग मंगो बन गई, धान की हालत पतरी है। अब तो मरवो और बचो है, तो बा मौत भी नै आ रई है।" हालांकि उसके उत्तर से मुस्कराहट मेरे चहरे पर आ गई लेकिन उसकी पीड़ा शब्दों पर सवार हो कर अंदर तक तैर गई।


इतने सालों के बाद भी भारत के अन्नदाता असहाय है, दूसरों पर आश्रित है। प्रकृति, राजनीति, तंत्र से अकेला लड़ता हुआ बेबस, असहाय, घुटता हुआ, मौत के मुंह में जाने को विवश। उसकी दशा देख कर माधव शुक्ल मनोज की कुछ पंक्तिया याद आ गईं-


सूख गओ ककरी को जउआ, छाती में उग गओ अकौआ।

सर के ऊपर आज विपत को बोलो कारो कौआ।

ऐसो लगे समय ने रख दओ धुनकी रूई पे पौआ।


आज भी आज़ादी के 68 साल बाद भी अधिकांश भारतीय कृषि इन्द्र देव के सहारे ही चलती है। इंद्र देवता के रूठ जाने पर सूखा, कीमतों में वृद्धि, कर्ज का अप्रत्याशित बोझ, बैंकों के चक्कर, बिचोलियों एवं साहूकारों के घेरे में फँस कर छोटा किसान या तो जमीन बेंचने पर मजबूर हैं या आत्महत्या की ओर अग्रसर हैं।


आधिकारिक आकलनों में प्रति 30 मिनट में एक किसान आत्महत्या कर रहा है, इसमें छोटे एवं मझोले किसान हैं, जो आर्थिक तंगी की सूरत में अपनी जान गँवा रहे हैं। अगर आत्महत्या के मामलों की सघन जाँच की जाए, तो ऐसे किसानों की संख्या ज्यादा निकलेगी जो मजदूर एवं शोषित वर्ग के हैं एवं जिनका जमीन पर स्वामित्व तो है, लेकिन उनकी जमीन किसी साहूकार एवं बड़े किसान के पास गिरवी रखी है एवं वो बटहार का काम करते है।


सरकारों के हर प्रयास के बाद भी आखिर छोटे एवं मँझोले किसानों की दशा और दिशा में अंतर क्यों नहीं आ रहा है? यह एक अनुत्तरित प्रश्न हम सभी के जेहन में उभरता है। इसका अगर विश्लेषण किया जाये तो प्रथमदृष्टया बात आती है कि सरकारी योजनाओं का जमीनी क्रियान्वयन तंत्र द्वारा नहीं किया जा रहा है।


आज भी छोटे एवं सीमांत किसान पुराने ढर्रे की ही खेती कर रहे है। उन्हें उन्नत एवं परम्परागत तरीके को एक साथ जोड़ कर खेती सीखने की आवश्यकता है। इसके लिए वृहद स्तर पर अभियान चलने की जरूरत है। एक ऐसा अभियान, जो छोटे एवं सीमांत किसानों को दृष्टिगत रखते हुए क्रियान्वित किया जाए।


अक्सर देखा जाता है की किसान अपने खेत की मृदा का परिक्षण नहीं कराते हैं, न ही उस मिटटी के अनुसार फसल बोते हैं, जिससे पैदावार में काफी गिरावट देखी गई है। सरकारों एवं तंत्र को एक व्यापक कार्यक्रम का इस उद्देश्य से जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन सुनिश्चित करना चाहिए।


कृषि विपणन व्यवस्था को सीमांत किसानों के लिए उपयोगी बनाने की आवश्यकता है, ताकि किसान बिचोलियों की मार से बच सकें। लघु एवं सीमांत किसानों को सब्जी एवं फल उत्पादन के साथ साथ टपक सिचांई प्रबंधन का समावेशीकरण कर कृषि को प्रोन्नत करने के प्रशिक्षण की आवश्यकता है। पर्याप्त जल संसाधन होने के बाद भी किसानो के खेत उसकी क्यों रह जाते हैं? इसका मुख्य कारण जल के उचित प्रबंधन का अभाव है। जल प्रवंधन जैसे महत्वपूर्ण विषय पर आज तक सरकारें कोई ठोस कानून एवं योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं कर पाईं है। ये चिंता का विषय है। किसानों को अंतर्वर्ती फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहन की जरूरत है, ताकि मुख्य फसल के ख़राब होने पर अंतरवर्ती फसल द्वारा कुछ भरपाई कर सके।



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