Geography, asked by PriyankaSarvang, 8 months ago

किस प्रकार की कृषि को "स्लैश और बर्न" कृषि (कर्तन- दहन) भी कहा जाता है?​

Answers

Answered by youngmini500
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Answer:

Slash-and-burn agriculture, also called fire-fallow cultivation, is a farming method that involves the cutting and burning of plants in a forest or woodland to create a field called a swidden. The method begins by cutting down the trees and woody plants in an area .

Slash-and-burn agriculture, method of cultivation in which forests are burned and cleared for planting. Slash-and-burn agriculture is often used by tropical-forest root-crop farmers in various parts of the world and by dry-rice cultivators of the forested hill country of Southeast Asia.

झूम कृषि (slash and burn farming) एक आदिम प्रकार की कृषि है जिसमें पहले वृक्षों तथा वनस्पतियों को काटकर उन्हें जला दिया जाता है और साफ की गई भूमि को पुराने उपकरणों (लकड़ी के हलों आदि) से जुताई करके बीज बो दिये जाते हैं। फसल पूर्णतः प्रकृति पर निर्भर होती है और उत्पादन बहुत कम हो पाता है। कुछ वर्षों तक (प्रायः दो या तीन वर्ष तक) जब तक मिट्टी में उर्वरता विद्यमान रहती है इस भूमि पर खेती की जाती है। इसके पश्चात् इस भूमि को छोड़ दिया जाता है जिस पर पुनः पेड़-पौधें उग आते हैं। अब अन्यत्र जंगली भूमि को साफ करके कृषि के लिए नई भूमि प्राप्त की जाती है और उस पर भी कुछ ही वर्ष तक खेती की जाती है। इस प्रकार यह एक स्थानानंतरणशील कृषि (shifting cultivation) है जिसमें थोड़े-थोड़े समय के अंतर पर खेत बदलते रहते हैं। भारत की पूर्वोत्तर पहाड़ियों में आदिम जातियों द्वारा की जाने वाली इस प्रकार की कृषि को झूम कृषि कहते हैं। इस प्रकार की स्थानांतरणशील कृषि को श्रीलंका में चेना, हिन्देसिया में लदांग और रोडेशिया में मिल्पा कहते हैं।[1]

यह खेती मुख्यतः उष्णकटिबंधीय वन प्रदेशों में की जाती है।

 

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Answered by kirtisingh01
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Answer:

झूम खेती, जिसे स्लैश एंड बर्न कृषि के रूप में भी जाना जाता है (झूम खेती .)

Explanation:

  • स्लैश एंड बर्न फार्मिंग - स्लैश और बर्न प्रक्रिया में फसल उगाने से पहले,पौधों और पेड़ों को काटकर जला दिया जाता है। जले हुए पौधों और पेड़ों की राख में पोटेशियम मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्व होते हैं जो मिट्टी को पोषक तत्वों से भरपूर बनाते हैं और जो अच्छी फसल उत्पादन में बहुत सहायक होता है। जलने के बाद बची राख में सीधे रोपण किया जाता है।
  • भूखंड पर खेती (फसल लगाने के लिए भूमि की तैयारी) - भूखंड पर खेती कुछ वर्षों तक की जाती है जब तक कि पूर्व में जली हुई भूमि की उर्वरता कम न हो जाए। भूमि के भूखंड पर जंगली वनस्पतियों को विकसित होने  देने के लिए भूखंड को खेती की तुलना में अधिक समय तक, कभी-कभी 10 या अधिक वर्षों तक अकेला छोड़ दिया जाता है। जब वनस्पति फिर से बढ़ी है, तो स्लैश और बर्न प्रक्रिया को दोहराया जा सकता है।
  • जब तक जमीन की उर्वरता फिर से बद नहीं जाती तब तक के लिए किसी दूसरी जमीन में स्लैश और बर्न की प्रक्रिया को दोहराया जाता है और उस पर कृषि की जाती  है।

स्लैश एंड बर्न कृषि का दुष्प्रभाव

  • वनों की कटाई: जब अत्यधिक लोग इस प्रकार की खेती को बड़े पैमाने में करते है और जंगलो को दोबारा पनपने का मौका नहीं देते है तब जंगल ज्यादा समाये के लिए या हमेशा के लिए खत्म हो जाते है।
  • वन्यजीव प्रजातियों का लुप्त होना:  जब इस प्रकार की खेती से जंगल नस्ट हो जाते है तब वन्य जीव जंतुओं का प्राकृतिक आवास नस्ट हो जाता है और वन्यजीव प्रजातियों भी नस्ट होने की कगार पर आ जाती है।
  • कटाव: जब खेतों को काट दिया जाता है, जला दिया जाता है और एक दूसरे के बगल में तेजी से उत्तराधिकार में खेती की जाती है, तो जड़ें और अस्थायी जल भंडारण खो जाते हैं और पोषक तत्वों को स्थायी रूप से क्षेत्र छोड़ने से रोकने में असमर्थ होते हैं।

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