किस संत किस संत ने कहा था कि बिना पर्यटन मानव अंधकार प्रेमी होकर रह जाएगा
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भारत के प्राचीन गुरुओ ने
बिना पर्यटन के मानव अंधकार प्रेमी होकर रह जाएगा। यह कथन किसी विशेष संत ने नहीं कहा बल्कि हमारे भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने समवेत स्वर में कहा है।
पर्यटन से तात्पर्य भ्रमण से है अर्थात एक जगह से दूसरी जगह जाना और भ्रमण करना पर्यटन कहलाता है। भारत की प्राचीन संस्कृति भ्रमण की रही है, क्योंकि भारत ऋषि-मुनियों का देश रहा है और ऋषि-मुनि कभी एक जगह टिक कर नहीं रह पाते।
एक कहावत प्रसिद्ध है कि ‘रमता जोगी और बहता पानी कभी एक जगह टिक कर नहीं रहते’।
पर्यटन के कारण ही संस्कृतियों का मिलन होता है। लोग एक दूसरे की संस्कृति से परिचित होते हैं। इससे मानव सभ्यता संस्कृति से समृद्ध होती है, ज्ञान का प्रचार-प्रसार होता है।
यदि पर्यटन नहीं रहेगा तो मानव एक ही जगह टिका रहेगा और उसके ज्ञान का प्रचार नहीं होगा। इससे धीरे-धीरे वह ज्ञान अंधकार में बदल जाएगा क्योंकि कोई भी ज्ञान जब तक बांटा नही जाये वह सार्थक नही होता और एक जगह पड़े-पड़े अर्थहीन हो जाता है। इसलिए ऋषि-मुनियों ने सही कहा कि बिना पर्यटन मानव अंधकार प्रेमी होकर रह जाएगा।