किस वाच्य में कर्ता और कर्म दोनों ही प्रधानता होती है
(1) कर्तृवाच्य
(ii) भाववाच्य
(iii) कर्मवाच्य
(iv) इनमें से कोई न
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क्रिया के उस रूपान्तर को भाववाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में क्रिया अथवा भाव की प्रधानता का बोध हो। दूसरे शब्दों में- क्रिया के जिस रूप में न तो कर्ता की प्रधानता हो न कर्म की, बल्कि क्रिया का भाव ही प्रधान हो, वहाँ भाववाच्य होता है। मोहन से टहला भी नहीं जाता।
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