कुश्ती के समय ढोल की आवाज़ और लुट्टन के दाँव - पेंच में क्या तालमेल था? पाठ में आए ध्वन्यात्मक शब्द और ढोल की आवाज़ आपके मन में कैसी ध्वनि पैदा करते हैं, उन्हें शब्द दीजिए।
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ढोल की थाप और लुट्टन के दाँव-पेच में गहरा तालमेल था। ढोल की हर एक थाप पर लुट्टन को एक नया दांव-पेच का आभास होता था। जैसे-जैसे ढोल की थाप बढ़ती जाती वैसे-वैसे लुट्टन के पूरे शरीर में थिरकन पैदा होती जाती थी। ढोल की हर एक थाप पर उसे जोश आ जाता था। उसे कुश्ती करने की नए-नए दांवपेचों का इशारा मिलता था। ढोल की थाप से उसके शरीर में फुर्ती और जोश आ जाता था।
ढोल की अलग-अलग थाप से उसे निम्नलिखित तरह के इशारे मिलते थे।
ढोल = धाक धिना तिरकट तिना
इशारा = दाँव काटो और बाहर आ जाओ।
ढोल = चटाक चट धा
इशारा = उठाकर पटक दो।
ढोल = चट धा, गिड़ धा
इशारा = आजा और भिड़ जा।
ढोल = चट गिड़ धा
इशारा = डरो मत।
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