कुषान राजाओं के शासनकाल के दौरान अन्य देशों के साथ व्यापार में हुई प्रगित की विवरण दीजिए
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Explanation:
कुषाण साम्राज्य ने विभिन्न शैलियों और देशों में प्रशिक्षित राजमिस्त्रियों और अन्य कारीगरों को इकट्ठा किया जिससे गांधार एवं मथुरा जैसी कला की नई शैलियों का विकास हुआ।
गांधार शैली को ग्रीक-बौद्ध शैली भी कहा जाता है। हालाँकि, इस शैली का विकास उत्तर-पश्चिम में ई.पू. प्रथम शताब्दी के मध्य गांधार में हुआ था लेकिन इसका सर्वाधिक विकास कुषाण काल में हुआ।
वर्तमान उत्तर प्रदेश के मथुरा में विकसित कला की शैली को ही मथुरा कला के नाम से जाना जाता है। पहली सदी के शुरुआती चरण में यह कला स्वदेशी तर्ज पर विकसित हुई। इसमें बुद्ध के चित्रों में उनके चेहरे पर आध्यात्मिक भावना प्रदर्शित होती है जो कि गांधार कला में काफी हद तक अनुपस्थित थी।
मथुरा कला में शिव और विष्णु को भी क्रमश: उनकी पत्नी पार्वती एवं लक्ष्मी की छवियों के साथ चित्रित किया गया है। मथुरा कला में यक्षिणी और अप्सरा के चित्रों को खूबसूरती से उकेरा गया था।
कनिष्क द्वारा चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन कश्मीर में किया गया जिसमें वसुबन्धु, अश्वघोष और नागार्जुन जैसे प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिकों ने भाग लिया। इसी समय बौद्ध धर्म की नई शाखा महायान की उत्पत्ति हुई।
कुषाणों के संरक्षण में बौद्ध धर्म का विकास हुआ लेकिन मथुरा से सैकड़ों अवशेष व मूर्तियाँ आदि मिले हैं जो कुषाण संरक्षण में बने और ये जैन धर्म के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं।
महायान बौद्ध विद्वान अश्वघोष ने बड़ी मात्रा में बुद्धचरित्र, सूत्रालंकार जैसे संस्कृत साहित्य की रचना की। वसुमित्र ने महाविभाषा को संकलित किया। नागार्जुन ने दर्शन पर पुस्तकें लिखीं। कनिष्क के राज्य में प्रसिद्ध चिकित्सक चरक एवं महान भवन निर्माता (बिल्डर) अजिलसिम (Ajilasim) थे।
विमकडफिसस के सिक्कों पर एक तरफ यूनानी लिपि और दूसरी तरफ खरोष्ठी लिपि है तथा साथ ही शिव की आकृति, नंदी, त्रिशूल आदि तत्कालीन कला एवं संस्कृति के विकास को परिलक्षित करते हैं।
कनिष्क के सिक्कों पर पार्थियन, यूनानी एवं भारतीय देवी-देवताओं की आकृतियाँ हैं और कुछ सिक्कों पर यूनानी ढंग से खड़े एवं कुछ पर भारतीय ढंग से बैठे बुद्ध की आकृतियाँ सम्राट के धर्म सहिष्णु चरित्र की तरफ इशारा करती हैं।
कुषाण शासकों द्वारा बड़ी संख्या में स्वर्ण मुद्राएँ जारी की गईं जो शुद्धता में गुप्त शासकों से उत्कृष्ट हैं. कनिष्क द्वारा एक बड़ा स्तूप एवं मठ बनवाया गया जिसमें बुद्ध के अवशेष रखे गए।
भक्ति भावना के पुट का उदय इसी काल में देखने को मिलता है जिसमें ज्ञानमार्ग अथवा कर्ममार्ग की अपेक्षा भक्तिमार्ग की लोकप्रियता में वृद्धि हो रही थी।
कुषाणों की अपनी विकसित संस्कृति नहीं थी लेकिन इन्होंने भारतीय एवं यूनानी संस्कृति को अपना लिया जो खूब विकसित हुई। भक्ति मार्ग की तरह कई मायनों में कला एवं संस्कृति विकास के अपने शुरुआती दौर से गुज़र रही थी। इसमें कोई दो राय नहीं है कि गुप्त राजाओं से पूर्व कुषाण युग भारतीय कला एवं संस्कृति में प्रमुख स्थान रखता है।