कृष्णा देवराया और तेनाली रामा के काहानियों के बारे में लिखिए|
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तेनाली रामालिंगाचार्युलु का जन्म १६वीं सदी के प्रारंभ में तेनाली नामक गाँव में एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में हुआ था रामा की पत्नी शारधा और पुत्र भास्कर था। रामा का परम मित्र गुंडप्पा था।तेनाली रामकृष्ण, जिन्हें “विकट कवि” और तेनालीराम के नाम से भी जाना जाता है। एक एक तेलगु कवि थे, जो वर्तमान आंध्रप्रदेश क्षेत्र में रहते थे एवं अपनी बुद्धि और हास्य के लिए जाने जाते है।
विजयनगर के सम्राट कृष्णदेवराय के दरबार के अष्टदिग्गज याने की आठ कवियों में से एक थे।अल्लासानी पेद्दना भी ऊनि अष्ट दिग्गजों में से एक है| | तेनाली रामकृष्ण ने हिंदुत्व पर रचनात्मक रचनाए की है।तेनालीराम की बुद्धिमत्ता के चर्चे दूर-दूर तक थे और यह राजा कृष्ण देवराय का प्रमुख सलाहकार भी था। इसकी सलाह और बुद्धिमत्ता के कारण ही राज्य आक्रमणकारियों से तो सुरक्षित रहता ही था, साथ ही राज्य में इसके कारण कला और संस्कृति को भी बढ़ावा मिला था। यह विजयनगर साम्राज्य का चाणक्य था।
एक बार जब वे मारे मारे फिर रहे थे तब एक मुनि ने उन्हें माँ काली की साधना करने का सुझाव दिया। तेनालीरामा की भक्ति से प्रसन्न हो काली ने उन्हें दर्शन दिये और रामा को दो कटोरे दिए पहले कटोरे में दही था जो धन के लिए था व दूसरे में दूध था जो बुद्भीमता के लिये था। देवी ने रामा को कहा के कोई एक कटोरा लेले तो रामा ने दोनो ही ले लिये जिससे रामा महा-धनवान व महा-बुद्धमान बना गया।
तेनालीरामा ने बाल्यकाल में कोई औपरचारिक शिक्षा नहीं प्राप्त किया| परंतु ज्ञान की क्षुधा के कारण वे बाद में प्रकांड विद्वान बनें। रामकृष्ण ने हास्य कवि के रूप में बहुत प्रसिद्धि प्राप्त कर ली थी। सूत्रों के अनुसार रामलिंग बहुत सी कठिन परिस्थितियों में राजा कृष्णा देवा राय को बचाने में भी सहायक साबित हुए है।इनके पास हर एक समस्या का समाधान रहता था|चुटकियों में वे हर समस्या का हल दूंढ निकाल ते थे|
उनकी पहली कविता, शैव शिक्षक उद्भट के बारे में उद्भटाराध्य चरितामु थी, जो पलाकुरिकी सोमनाथ की बसवा पुराणं पर आधारित थी। उद्भटाराध्य में उन्होंने वाराणसी की पवित्रता का भी उल्लेख किया है। तेनाली रामकृष्ण का शैव धर्म के प्रति लगाव होने की वजह से, उन्हें तेनाली रामलिंग कवि के नाम से भी जाना जाता था।
जवकि वैष्णव धर्म पर भी उनका गहरा विश्वास था, जो सुंदर उदाहरण हमें उनकी रचना पांडुरंग महात्म्य में देखने मिलता है।कृष्णा देवा रायलू और रामलिंग के जीवन की सबसे प्रसिद्द कहानिया उनकी बुद्धिमत्ता और प्रतिभा का एक सुंदर उदाहरण है।
का जन्म १६वीं सदी के प्रारंभ में थुमुलुरु नामक गाँव में एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में हुआ थाहालांकि लोकप्रिय धारणानुसार उनका जन्म तेनाली में हुआ था। उनका जन्म नाम गरालपति रामाकृष्णा था। उनके पिता गरालपति रामैया तेनाली नगर के रामलिंगेस्वर स्वामी मंदिर में पुरोहित थे। रामैया का निधन रामकृष्ण के बाल्यकाल में ही हो गया था, जिसके पश्चात उनकी माता लक्षम्मा तेनाली नगर लौट कर अपने भाई के साथ रहने लगीं। रामाकृष्णा अपने मामा के नगर में ही बड़े हुये और रामाकृष्णा के नाम से जाने जाने लगे।
तेनालीरामा ने बाल्यकाल में कोई औपरचारिक शिक्षा नहीं पाई, परंतु ज्ञान की क्षुधा के कारण वे बाद में प्रकांड विद्वान बनें। एक सुपरिचित लोक कथा के अनुसार शैव होने के नाते तेनालीरामा को वैष्णव विद्वान अपना शिष्य बनाने से इंकार करते रहे। एक बार जब वे मारे मारे फिर रहे थे तब एक मुनि ने उन्हें माँ काली की साधना करने का सुझाव दिया। तेनालीरामा की भक्ति से प्रसन्न हो काली ने उन्हें दर्शन दिये और रामा को दो कटोरे दिए पहले कटोरे में दही था जो धन के लिए था व दूसरे में दूध था जो बुद्भीमता के लिये था। देवी ने रामा को कहा के कोई एक कटोरा लेले तो रामा ने दोनो ही ले लिये जिससे रामा महा-धनवान व महा-बुद्धमान बना गया।
तेनाली रामाकृष्णा ने हिन्दू धर्म पर रचनायें की हैं।कहा जाता है कि वे मूल रूप से शैव थे और रामलिंग के नाम से जाने जाते थे पर बाद में उन्होंने वैष्णव धर्म अपना कर अपना नाम रामकृष्ण रख लिया। रामा की पत्नी शारधाऔर पुत्र भास्कर था। रामा का परम मित्र गुंडप्पा था।