Hindi, asked by itsvaishnavi16, 3 days ago

कृति 2 : (स्वमत अभिव्यक्ति) • 'जीवन की सार्थकता' विषय पर अपने विचार 25 से 30 शब्दों में लिखिए। उत्तर:​

Answers

Answered by dikshachavan258
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Answer:

मनुष्य इस संसार में पैदा होता है और मरकर मिट्टी में मिल जाता है। यह उसका इहलौकिक जीवन है जो यहां शुरू होकर यहीं समाप्त हो जाता है। जीवन तभी सार्थक हो सकता है जब यह इस भौतिक जीवन के आगे जो कुछ है उसकी तैयारी समझा जाए। हम जीवन केवल शरीर को मानते हैं, जो शरीरी [आत्मा] की यात्रा है। यह अपने आप में पूर्ण नहीं है तथा किसी श्रृंखला की कड़ी है, जिसके कारण हम जीवित है। हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह विचार करे कि हमारा ज्ञान शरीर का है या आत्मा का है? जैसे-जैसे हम ज्ञान के क्षेत्र में प्रवेश करते जाते है, हम यह जान पाते है कि हमारा ज्ञान आत्मा का परम ज्ञान है।

जीवन के भौतिक तथा आध्यात्मिक, दो पहलू है। पार्थिव जीवन को दिव्य जीवन से तथा भौतिक जीवन को आध्यात्मिक जीवन से भिन्न समझ लेने का परिणाम यह होता है कि इंद्रियों के इस भौतिक जीवन को हम सब कुछ समझ लेते है। इंद्रियों का जीवन विषय भोग के लिए ही है। ऐसे में मनुष्य किसी दिशा की ओर न जाकर जीवन के मार्ग में भटक जाता है। जीवन की दिशा निश्चित होने पर मनुष्य बिना किसी संदेह के अपने जीवन की नौका को उस ओर खेने लगता है। दिशा भ्रम होने पर वह हर समय संदेह में रहता है कि जीवन के मार्ग में सत्य क्या है और सही रास्ता क्या है? अगर यही जीवन सब कुछ है तथा परमार्थ कुछ भी नहीं है तो उसकी सोच भौतिकतावादी होने लगती है। यह भौतिक जीवन अंतिम अवस्था नहीं है। यह आगे के दिव्य जीवन की एक कड़ी मात्र है। यदि यह दृष्टिकोण रखकर जिया जाए तो हम आध्यात्मिक मार्ग पर चल सकते हैं। जीवन में भौतिकता और आध्यात्मिकता, दोनों का होना अनिवार्य है। भौतिकता साधन है और आध्यात्मिकता साध्य है। जीवन की सार्थकता इसी में है कि हम शरीर को साधन मानकर जीवन के कार्यक्रम का निर्माण करे। हमें साधन नहीं जुटाते रहना है, क्योंकि ऐसा करते हुए हम स्वयं ही साधन बन जाते है। यदि आत्मोन्नति करनी है तो भौतिकता के मार्ग को छोड़कर आध्यात्मिकता का मार्ग अपनाना चाहिए।

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