Hindi, asked by toklakpaloh, 1 month ago

' कुटेज अपने मन पर सवारी करता है, मन को अपने पर सवार नही होने देता। मनस्वी मित्र , तुम धन्य हो।' इस कथन को​

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Answered by romenborah004
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Answer:

मन अपने वश में नहीं है वही दूसरे के मन का छंदावर्तन करता है, अपने को छिपाने के लिए मिथ्या आडंबर रचता है, दूसरों को फँसाने के लिए जाल बिछाता है। कुटज इन सब मिथ्याचारों से मुक्त है। ... कुटज अपने मन पर सवारी करता है, मन को अपने पर सवार नहीं होने देता। मनस्वी मित्र, तुम धन्य हो!

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