Hindi, asked by pathanneha916NEHA, 2 months ago

कृति पूर्ण कीजिए
आरती में समाया प्रकृति रूप​

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Answered by lavairis504qjio
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Explanation:

आरती हिन्दू उपासना की एक विधि है। इसमें जलती हुई लौ या इसके समान कुछ खास वस्तुओं से आराध्य के सामाने एक विशेष विधि से घुमाई जाती है। ये लौ घी या तेल के दीये की हो सकती है या कपूर की। इसमें वैकल्पिक रूप से, घी, धूप तथा सुगंधित पदार्थों को भी मिलाया जाता है। कई बार इसके साथ संगीत (भजन) तथा नृत्य भी होता है। मंदिरों में इसे प्रातः, सांय एवं रात्रि (शयन) में द्वार के बंद होने से पहले किया जाता है। प्राचीन काल में यह व्यापक पैमाने पर प्रयोग किया जाता था। तमिल भाषा में इसे दीप आराधनई कहते हैं।

Answered by madeducators3
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आरती में समाया प्रकृति रूप

Explanation:

आरती हिंदू पूजा की एक विधि है। इसमें जलती हुई लौ या उसके जैसी कुछ विशेष वस्तुओं के साथ मूर्ति के सामने एक विशेष तरीके से इसे घुमाया जाता है। यह लौ घी या तेल के दीपक या कपूर की हो सकती है। वैकल्पिक रूप से इसमें घी, अगरबत्ती और सुगंधित पदार्थ भी मिलाए जाते हैं। कभी-कभी यह संगीत (भजन) और नृत्य के साथ होता है। मंदिरों में, यह दरवाजा बंद करने से पहले सुबह, शाम और रात (सोते हुए) किया जाता है। प्राचीन काल में इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था। तमिल भाषा में इसे दीप आराधनाई कहते हैं।

आमतौर पर पूजा के अंत में, आराध्य भगवान की आरती करते हैं।

आरती में कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। उन सभी का विशेष अर्थ है।

ऐसा माना जाता है कि केवल आरती करने से ही नहीं बल्कि इसमें भाग लेने से भी बहुत पुण्य मिलता है।

किसी भी देवता की आरती करते समय उन्हें तीन बार पुष्प अर्पित करना चाहिए।

इस दौरान ढोल, नगाड़े, घड़ियाल आदि भी बजाए जाते हैं

आरती करते समय भक्त के मन में ऐसी भावना होनी चाहिए, जैसे वह पांच आत्माओं की सहायता से भगवान की आरती कर रहा हो। घी की लौ को आत्मा की आत्मा के प्रकाश का प्रतीक माना जाता है।

यदि भक्त अंतरतम हृदय से भगवान को पुकारते हैं, तो इसे पंचरति कहा जाता है। आमतौर पर दिन में एक से पांच बार आरती की जाती है।

यह सभी प्रकार के धार्मिक समारोहों और त्योहारों में पूजा के अंत में किया जाता है।

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