कैदी और कोकिला के लेखक माखनलाल चतुर्वेदी ने कोकिलाके माध्यम से किन भावों को स्पष्ट किया है
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Kaide aur Kokila by Makhan Lal Chaturwedi- कैदी और कोकिला
माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय- Makhanlal Chaturvedi Ka Jeevan Parichay : माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में बाबई नामक गांव में सन 1889 में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा के बाद इन्होंने घर पर ही संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी, गुजराती आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। वे भारत के ख्याति-प्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे, जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। वे सरल भाषा और जोशीली भावनाओं के अनूठे हिन्दी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठित पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ ज़ोरदार प्रचार किया और नई पीढी से आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। वे सच्चे देशप्रेमी थे और 1921-22 के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। उनकी कविताओं में हमें देशप्रेम के साथ-साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण मिलता है।
हिम किरीटनी, साहित्य देवता, हिम तरंगिनी, वेणु लो गूंजे धरा उनकी प्रमुख कविताओं में से एक है। अपने जीवनकाल में उन्होंने अध्यापन एवं संपादन दोनों का कार्य किया। उन्हें ‘देव पुरस्कार’, पद्मभूषण एवं साहित्य अकादमी जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्होंने अपनी कविताओं में शिल्प की तुलना में भावना को ज़्यादा महत्त्व दिया है और यही कारण है कि उन्होंने अपनी रचनाओं में बोलचाल की भाषा का उपयोग किया है।
कैदी और कोकिला का भावार्थ – Kaidi Aur Kokila Ka Bhavarth: कवि ने “कैदी और कोकिला” कविता उस समय लिखी थी, जब देश ब्रिटिश शासन के अधीन गुलामी के जंजीरों में जकड़ा हुआ था। वे खुद भी एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जिस वजह से उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। जेल में रहने के दौरान वे इस बात से अवगत हुए कि जेल जाने के बाद स्वतंत्रता सेनानियों के साथ कितना दुर्व्यवहार होता है। इसी सोच को उस समय समस्त जनता के सामने लाने के लिए उन्होंने इस कविता की रचना की।