केंद्र से राज्यों को निधि के अंतरण के विभिन्न माध्यम कौन से हैं? चचॉ कीजिए 500 words m
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परिचयसंपादित करें
भारत में स्वतंत्रता उपरांत केंद्र-राज्य संबंध का मसला अत्याधिक संवेदनशील मामला रहा है।[1] विषय चाहे अलग भाषाओं की पहचान, असमान विकास, राज्यों के गठन का हो, पुनर्गठन का हो या फिर विशेष राज्य का दर्जा देने से जुड़ा हो। ये सब केंद्र-राज्य संबंधों की सीमा में आते हैं। इनके अलावा देश में शिक्षा, व्यापार जैसे विषयों पर नीति निर्माण के सवाल उठने पर भी उसके केन्द्र में है केंद्र और राज्य के बीच में इनको लेकर क्या आपसी समझ है, यही महत्त्वपूर्ण होता है।
भारतीय संविधान में भारत को 'राज्यों का संघ' कहा गया है न कि संघवादी राज्य। भारतीय संविधान में विधायी, प्रशासिनिक और वित्तीय शक्तियों का सुस्पष्ट बंटवारा केंद्र और राज्यों के बीच किया है।[1]
विधायी शक्ति के विषयों को तीन सूचियों में बांटा गया है।
(१) केंद्रीय सूचीकेंद्रीय सूची में वे विषय शामिल किए गए हैं जिन पर सिर्फ केंद्र सरकार कानून बना सकती है। इस सूची में राष्ट्रीय महत्व के विषय शामिल किए गए है जैसे कि प्रतिरक्षा, विदेश संबंध, मुद्रा, संचार और वित्तीय मामले आदि।(२) राज्य सूचीराज्य सूची में कानून और व्यवस्था, जन स्वास्थ्य, प्रशासन जैसे स्थानीय महत्व के विषयों को शामिल किया गया है।(३) समवर्त्ती सूचीसमवर्त्ती सूची में उन विषयों को शामिल किया गया है जिनपर केंद्र ओर राज्य दोनों ही कानून बना सकते हैं। कोई राज्य सरकार केंद्र के द्वारा बनाए गए कानूनों व नीति के विरोध में या फिर विपरीत कानून नहीं बना सकती है।
संविधान के अनुच्छेद २५६ व २५५ में केंद्र को शक्तिशाली बनाया गया है।
संविधान की सातंवी अनुसूची विधायिका के विषय़ केन्द्र राज्य के मध्य विभाजित करती है संघ सूची में महत्वपूर्ण तथा सर्वाधिक विषय़ है
राज्यों पर केन्द्र का विधान संबंधी नियंत्रण
1. अनु 31[1] के अनुसार राज्य विधायिका को अधिकार देता है कि वे निजी संपत्ति जनहित हेतु विधि बना कर ग्रहित कर ले परंतु ऐसी कोई विधि असंवैधानिक/रद्द नहीं की जायेगी यदि यह अनु 14 व अनु 19 का उल्लघंन करे परंतु यह न्यायिक पुनरीक्षण का पात्र होगा किंतु यदि इस विधि को राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु रखा गया और उस से स्वीकृति मिली भी हो तो वह न्यायिक पुनरीक्षा का पात्र नहीं होगा2. अनु 31[ब] के द्वारा नौवीं अनुसूची भी जोड़ी गयी है तथा उन सभी अधिनियमों को जो राज्य विधायिका द्वारा पारित हो तथा अनुसूची के अधीन रखें गये हो को भी न्यायिक पुनरीक्षा से छूट मिल जाती है लेकिन यह कार्य संसद की स्वीकृति से होता है3. अनु 200 राज्य का राज्यपाल धन बिल सहित बिल जिसे राज्य विधायिका ने पास किया हो को राष्ट्रपति की सहमति के लिये आरक्षित कर सकता है4. अनु 288[2] राज्य विधायिका को करारोपण की शक्ति उन केन्द्रीय अधिकरणों पर नहीं देता जो कि जल संग्रह, विधुत उत्पादन, तथा विधुत उपभोग, वितरण, उपभोग, से संबंधित हो ऐसा बिल पहले राष्ट्रपति की स्वीकृति पायेगा5. अनु 305[ब] के अनुसार राज्य विधायिकाको शक्ति देता है कि वो अंतराज्य व्यापार वाणिज़्य पर युक्ति निर्बधंन लगाये परंतु राज्य विधायिका में लाया गया बिल केवल राष्ट्रप्ति की अनुशंसा से ही लाया जा सकता है
simrankhanjsk12:
Thank you bs itna hi
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