कोउ अंतड़िन की पहिरि माल इतरात दिखावत
कोउ चरबी लै चोप सहित निज अंगनि लावत।
कोउ मुंडनि लै मानि मोद कंदुक लौं डारत।
कोउ रुंडनि पै बैठि करेजो कोरि निकारत।
कोउ कड़ाकड़ हाड़ चाबि नाचत दै ताली।
कोउ पीअत रुधिर खोपड़ी की करि प्याली। khon sa raas ha
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veebhatsa ras.
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वीभत्स रस
Explanation: यहाँ – स्थायीभाव – जुगुप्सा (घृणा) है,आश्रय – जिसके मन में घृणा हो,आलंबन – विषय के द्वारा किये जाने वाले कृत्य उद्दीपन – कलेजे का फाड़ना, हड्डियों का चबाना अनुभाव – नाक-मुँह सिकोड़ना, घृणा करना, थूकनासंचारी भाव – ग्लानि दैन्य आदि। अतः यहाँ पर वीभत्स रस होगा.
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