काव्य सौंदर्य स्पष्ट किजीए :
हमारे हरि हारिल की लकरी ।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ करि पकरी
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसी, कान्ह-कान्ह जक री ।
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गोपियां उद्धव से कहती है, जिस प्रकार हारिल एक तिनके को हमेशा अपने पैरों में दबाए रखता है। वह किसी भी हालत में उस तिनके को नहीं छोड़ता। उसी प्रकार कृष्ण हमारे मन में, आचरण में, जागते हुए कृष्ण का चिंतन और सोते हुए कृष्ण का स्वप्न देखना। अर्थात गोपियां किसी भी स्थिति में कृष्ण को छोड़ने वाले नहीं हैं। गोपियां कृष्ण प्रेम से विरक्त होना नहीं चाहती।
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