काव्यांश -
यह समर तो और भी अपवाद है,
चाहता कोई नहीं इसको, मगर
जूझना पड़ता सभी को, शत्रु जब
आ गया हो दवार पर ललकारता.
छीनता हो सत्व कोई, और तू
त्याग-तप के काम ले यह पाप है।
पुण्य है विच्छिन्न कर देना उसे
बढ रहा तेरी तरफ जो हाथ हो.
युद्ध को तुम निदय कहते को मगर
जब तलक है उठ रही चिंगारिया
भिन्न सवाथो के कुलिस संघर्ष की,
युदध तब तक विश्व में अनिवार्य है.
और जो अनिवार्य है, उसके लिए
खिन्न या परितपत होना वयथं है.
तू नहीं लडता , न लडता , आग यह
फूटती निशचय किसी भी बयाज से.
1. युदध के लिए पछतावा न करने की बात कयों कही गई है?
2. विश्व में युदध कब तक अनिवार्य रहेगा?
3.' भिन्न सवाथो के कुलिस संघर्ष की चिंगारियो 'का कया आशय है?
4. इस काव्यांश में कवि ने किसे पाप कहा है.
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यह समर तो और भी अपवाद है,
चाहता कोई नहीं इसको, मगर
जूझना पड़ता सभी को, शत्रु जब
आ गया हो दवार पर ललकारता.
छीनता हो सत्व कोई, और तू
त्याग-तप के काम ले यह पाप है।
पुण्य है विच्छिन्न कर देना उसे
बढ रहा तेरी तरफ जो हाथ हो.
युद्ध को तुम निदय कहते को मगर
जब तलक है उठ रही चिंगारिया
भिन्न सवाथो के कुलिस संघर्ष की,
युदध तब तक विश्व में अनिवार्य है.
और जो अनिवार्य है, उसके लिए
खिन्न या परितपत होना वयथं है.
तू नहीं लडता , न लडता , आग यह
फूटती निशचय किसी भी बयाज से
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जूझना पड़ता सभी को, शत्रु जब
आ गया हो दवार पर ललकारता.
छीनता हो सत्व कोई, और तू
त्याग-तप के काम ले
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