Hindi, asked by Anonymous, 3 months ago

'क्यों बैठे हो भाग्य के भरोसे' पर 2 मिनट का भाषण दीजिए।​

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Answered by raghvendrark500
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भाग्य और कर्म का किसी विशेष वर्ग, जाति, भाषा और लिंग से नहीं, बल्कि चराचर प्राणी जगत से संबंध है। मनुष्य जैसे ही पंचतत्वों से बने इस शरीर को लेकर मां के गर्भ से बाहर निकलता है, उसका कर्म आरम्भ हो जाता है। यह कार्य तब तक चलता रहता है, जब तक इस धरती पर वह अन्तिम श्वास लेता है। इसलिए मानव जीवन को कर्मक्षेत्र कहा जाता है। मानव की जीवंतता उसके चलते रहने में, उसके कर्मशील बने रहने में ही है। इसीलिए जीवन की तुलना गाड़ी से की जाती है। इस कर्मक्षेत्र में कर्म के फल से ही जीवन में सुख-दुख आते हैं। कर्म का फल यदि सुखद हो तो सुख की अनुभूति होती है, दुखद हो, निराशाजनक हो तो दुख की अनुभूति होती है। लेकिन हम सबके जीवन में अक्सर ऐसा भी होता है, जब उसने कर्म अच्छा किया हो और उसका परिणाम या फल वैसा न मिला हो। कर्म के अनुकूल फल न मिलने और उसके अधिक या कम मिलने पर- दोनों ही स्थितियों में हम भाग्य का नाम लेते हैं। इसीलिए कर्मफल और भाग्य ऐसे विषय हैं, जिनके बारे में जानने के लिए हर व्यक्ति सदा आतुर रहता है। भारतीय चिन्तन कर्म को प्रधान मानता है। गीता में कृष्ण समझाते हैं, तेरा अधिकार कर्म करना है, फल पर तेरा अधिकार नहीं है। लेकिन मनुष्य अपने कर्म के आधार पर ऊंच-नीच, श्रेष्ठ-निकृष्ट, अच्छे-बुरे मनुष्य की कोटि में जाना चाहता है। यदि फल की चिन्ता नहीं करे तो फिर उसे भाग्य पर आश्रित रहना होगा, भरोसा करना होगा। अब मन में जिज्ञासा उठती है कि फिर भाग्य क्या है? किसी ने भाग्य को ईश्वर की इच्छा समझा है, तो किसी ने भाग्य को समय का चक्र जिसे जीतना असंभव है। कोई मानता है कि जो आज का पुरुषार्थ है, वही कल का भाग्य है। असल में भाग्य को ईश्वरप्रदत्त इसलिए मान लिया जाता है कि वह हमारे वर्तमान के कर्म पर आधारित नहीं होता। जब भी हमारी इच्छा के खिलाफ या इच्छा से कम या अधिक प्राप्ति होती है तो हम भाग्य को ही उसका आधार मान लेते हैं, लेकिन है वह भी कर्म का ही फल। जो दृश्य है वह कर्म और जो अदृश्य है वह भाग्य। जो दिखाई दे रहा है वह कर्म और जो नहीं दिखाई दे रहा है वह भाग्य। भारतीय चिन्तन पुनर्जन्म पर विश्वास करता है। हमने जो जन्म लिया है उसका पिछले जन्म से भी और अगले जन्म से भी सम्बन्ध होता है। अर्थात् हमारे कर्म का खाता आज भी हमारे साथ चल रहा है और जब पुनर्जन्म लेंगे तब भी वह कर्म खाता साथ चलेगा। इस आधार पर भाग्य की बात कुछ समझ आती है कि जिस तरह हमारा स्थूल धन अर्थात पूंजी चाहे वह धन के रूप में हो या वस्तु के रूप में, वह हमारे मरने से समाप्त नहीं हो जाती, इसी प्रकार हमारे कर्म का खाता भी जरूरी नहीं कि हमारे एक जन्म के साथ समाप्त हो जाए। वह भी शेष रहता है। यही कारण है कि हम कर्म को भी प्रधान मानते हैं और भाग्य की बात भी कहते हैं। हम जैसे कर्म करेंगे वैसा ही हमारा बहीखाता होगा और उसी के आधार पर हमें इस जन्म में संचित कर्म का फल प्राप्त होगा। इस तरह हमारा भाग्य भी कर्म से ही बनता है और भाग्य के मूल में भी कर्म ही होता है। भाग्य का प्रभाव मनुष्य में ही नहीं, सभी प्राणियों में देखा जा सकता है। एक कुत्ता किसी धनवान के घर में रहता है और एक साधारण व्यक्ति के घर में। एक शेर चिड़ियाघर में रहता है और एक जंगल में। एक जानवर गुस्सैल और कटखना तथा दूसरा बेहद शांत और सीधा होता है। कर्म और भाग्य का प्रभाव आप उनके जीवन में भी देख सकते हैं।


Anonymous: Hey can you answer in a little easier language??
Anonymous: The answer is very good but the language is a little difficult to understand.
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