Psychology, asked by lokeshdot3249, 8 months ago

क्या संवेगों की चेतन रूप से व्याख्या तथा नामकरण करना उनको समझने के लिए महत्वपूर्ण है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए चर्चा कीजिए।

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Answered by rudranil16
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Answer:

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Answered by bhatiamona
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संवेगों की चेतन रूप से व्याख्या तथा नामकरण करना उनको समझने के लिए महत्वपूर्ण है|

संवेगों का नामकरण: संवेग और संस्कृति एक-दूसरे से अंत: संबंधित है| संवेगों की अनुभूति व अभिव्यक्तियों दोनों ही संस्कृति के विशिष्ट रूप से प्रदर्शन नियमों द्वारा प्रभावित होती है| इसे जानने में आसानी भी हो जाती है |

उदाहरण  

मूल संवेग  नामों या लेबल तथा विस्तारण में भी परस्पर अलग होते है|  

अंग्रेजी के शब्द क्रोध के लिए 40 लेबल या नाम है | जब उत्तरी अमरीकियों से मुक्त रूप से लेबल लगाने को कहा गया तो क्रोध अभिव्यक्त करने वाले चेहरे के लिए उन्होंने 40 लेबल दिए तथा अवमानना अभिव्यक्त करने वाले चेहरे को देखकर 81 लेबल दिए |  

जापानियों ने विभन्न संवेग अभिव्यक्त करने वाले चेहरों को देखकर भिन्न-भिन्न लेबल प्रस्तुत किए| प्रसन्नता अभियक्त करने wake चेहरे को देखकर 10 लेबल और क्रोध को 8 और घृणा को 6 लेबल के लिए लेबल की मात्रा अलग-अलग थी |

चीनी साहित्य में सात संवेगों का उल्लेख है  

हर्ष, दुःख , बहुत , प्रेम , नापसंद तथा पसंद |  

प्राचीन भारतीय साहित्य में 8 प्रकार के संवेगों को दर्शाया गया है:

प्रेम , आमोद-प्रमोद , ऊर्जा, आश्चर्य , क्रोध , शोक , घृणा तथा भय |  

साहित्य में कुछ संवेग जैसे प्रसन्नता , दुःख ,भय , क्रोध तथा घृणा को एक समान रूप से मनुष्यों के लिए मूल समझा जाता है|

जबकि कुछ अन्य जैसे आश्चर्य , अवमानना , शर्म तथा अपराध बोध को सब के लिए मूल नहीं समझा जाता है |

अत: कहा जाता है , हमेशा यह अवश्य याद रखना चाहिए कि संवेगों को प्रत्येक प्रक्रियाओं में संस्कृति की अपनी भूमिका है |  

संवेगों की अनुभूति तथा  अभिव्यक्ति दोनों हो संस्कृति विशेष के प्रदर्शन नियमों के कारण  प्रभावित होती है | उन दिशाओं की सीमा का निर्धारण करती है जिस के अंतर्गत संवेगों की अभिव्यक्ति की जा सकती है |

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