Hindi, asked by raipallavi630, 1 day ago

क्या विद्यालय शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होना चाहिए वाद विवाद में इसके लिए पक्ष में क्या पॉइंट बोलें कृपया बताइए ​

Answers

Answered by palak6047
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Explanation:

हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक भारतेन्दु हरिशचन्द जी ने भी मातृभाषा का महत्व समझाते हुए कहा था- ” निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।

बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटे न हिय को शूल॥”

महात्मा गाँधी जी ने भी कहा था – “मातृभाषा में शिक्षा हो तो भारत में नकलची नमूने नहीं, करोड़ों वैज्ञानिक और दार्शनिक पैदा होंगे”

1909 में जब महात्मा गांधी ‘हिंद स्वराज’ लिख रहे थे तो उसमें वह भावी भारतीय राष्ट्र का स्वरूप भी प्रस्तुत कर रहे थे. भारत में भाषा और शिक्षा के स्वरूप के संबंध में गांधीजी ने लिखा- “मुझे तो लगता है कि हमें अपनी सभी भाषाओं को चमकाना चाहिए, प्रत्येक पढ़े-लिखे भारतीय को अपनी भाषा का, हिन्दू को संस्कृत का, मुसलमान को अरबी का, पारसी को फारसी का ज्ञान होना चाहिए.

भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं, वरन किसी भी राष्ट्र के स्वाभिमान तथा उसकी प्राचीन संस्कृति की संवाहिका भी होती है। गुलाम देशों की अपनी कोई भाषा नहीं होती। वे अपने शासकों की बोली बोलने को मजबूर होते हैं। भाषा के बिना देश गूंगा होता है। दुनिया के सभी विकसित देशों ने अपनी मातृभाषा को ही सर्वोच्च महत्व दिया। इसी को अपने देश की शिक्षा का माध्यम बनाया। रूस, चीन, जापान, जर्मनी, फ्रांस ने अपनी मातृभाषा को ही शिक्षा का माध्यम बनाया। लेकिन भारत में अंग्रेजी को चलाये रखने के कारण स्थानीय भाषाओं का महत्व कम हुआ। अंग्रेजी सीखना अनुचित नहीं है, लेकिन उसे मातृभाषा से ऊपर स्थान देना अनुचित है। आज भारत के करोड़ों लोगों को अंग्रेजी माध्यम से शिक्षण देना उन्हें गुलामी में डालने जैसा है. मैकाले ने जिस शिक्षण पद्धति की नींव डाली, वह सचमुच गुलामी की नींव थी, उसका एक ही इरादा था भारतीयों को गुलाम बनाना है तो सबसे पहले इनकी शिक्षा पद्धति को गुलाम बना डालो। फिर ये शरीर से तो हिंदुस्तानी लगेंगे और मानसिक रूप से ये अंग्रेजों के गुलाम बने रहेंगे। आज हम स्वराज्य व आत्मनिर्भरता की बात भी पराई भाषा में करते हैं, यह कैसी बिडंबना है।

नई भारतीय शिक्षा नीति में इस कमी को दूर करने का प्रयास किया गया है। इसमें मातृभाषा और स्थानीय भाषा को महत्व दिया गया है। स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक भारतीय भाषाओं को उचित महत्व दिया है। जिससे भारतीय भाषाओं को संरक्षण मिलेगा।

वक्ताओं ने मातृभाषा के विपक्ष में कहा- केवल मातृभाषा में शिक्षा देने से वैश्विक स्तर संवाद स्थापित करने बाधा उत्पन्न होगी, आज के युवा दुनिया के सामने बहुत पीछे रह जाएंगे। तकनीकी युग में विदेशी भाषाओं के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने से वैश्विक स्तर पर रचनात्मक कार्य व रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे।

Answered by BrainlySrijanll
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शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए, इस बात पर आज के आधुनिक समय में विवाद किया जा सकता है। आज जब विश्व एक वैश्विक गांव में तब्दील होता जा रहा है, संस्कृतियां सिमट रही हैं। लोग एक कॉमन संस्कृति, एक कॉमन भाषा को अपनाने लगे हैं। ऐसे में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा में आवश्यक हो यह तर्कसंगत नहीं लगता।

देखा जाए तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी भाषा और राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी भाषा का चलन अधिक है। ऐसे में शिक्षा के माध्यम में इन दो भाषाओं की प्रमुखता हो, वह ज्यादा उचित रहेगा। यह बात ठीक है कि कोई भी व्यक्ति अपनी मातृभाषा में अच्छी शिक्षा ग्रहण कर सकता है, अच्छी तरह समझ सकता है। लेकिन आरंभिक शिक्षा मातृभाषा में होने के बाद सेकेंडरी स्तर की शिक्षा एक कॉमन भाषा में होनी चाहिए।

ऐसी भाषा जो सब जगह समझाती हो ताकि व्यक्ति स्वयं को उस भाषा के अनुरूप तैयार कर ले और उसे भविष्य में रोजगार नौकरी आदि पाने में दिक्कत ना हो। क्योंकि हो सकता है उसे रोजगार नौकरी की तलाश में अपने राज्य से बाहर जाना पड़े या देश से बाहर जाना पड़े। ऐसी स्थिति में यदि वह उस भाषा में शिक्षा ग्रहण करेगा जो सबसे अधिक प्रचलन में है, सबसे ज्यादा लोकप्रिय है, जिसका विस्तार ज्यादा है, तो यह व्यक्ति के लिए भी ठीक रहेगा।

इसलिए शिक्षा का माध्यम मातृभाषा में ही हो, ऐसा आवश्यक नहीं। कुछ राज्यों की भाषाएं केवल राज्यों तक ही सीमित होती हैं, उनका अधिक विस्तार नहीं होता। यदि वह व्यक्ति अपनी राज्य की भाषा अर्थात अपनी मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करेगा तो केवल अपने राज्य तक ही सीमित रह जाएगा। राज्य से बाहर उसकी नौकरी की संभावनाएं खत्म हो सकती है। इसलिए अपने रोजगार की संभावनाएं बढ़ाने के लिए मातृभाषा मे शिक्षा की अनिवार्यता नहीं होनी चाहिए।

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