Hindi, asked by rohitraj4936, 7 months ago

को
यह संत है तो अब लॉट चलो तम घर को
चौक सब सुनकर अटल
फैकई
स्वर
बैठी थी मचल तहापि असंन्यतरंगा
वह सिंही अब थी हहा गोमुखी गंगा


kaun sa ras hai​

Answers

Answered by ansh5561
0

Answer:

Bhai I'd ont no sorry mate

Answered by sainishubham4716
0

Answer:

तदन्तर बैठी सभा उटज के आगे,

नीले वितान के तले दीप बहु जागे।

टकटकी लगाये नयन सुरों के थे वे,

परिणामोत्सुक उन भयातुरों के थे वे।

उत्फुल्ल करौंदी-कुंज वायु रह रह कर,

करती थी सबको पुलक-पूर्ण मह मह कर।

वह चन्द्रलोक था, कहाँ चाँदनी वैसी,

प्रभु बोले गिरा गभीर नीरनिधि जैसी।

"हे भरतभद्र, अब कहो अभीप्सित अपना;"

सब सजग हो गये, भंग हुआ ज्यों सपना।

"हे आर्य, रहा क्या भरत-अभीप्सित अब भी?

मिल गया अकण्टक राज्य उसे जब, तब भी?

पाया तुमने तरु-तले अरण्य-बसेरा,

रह गया अभीप्सित शेष तदपि क्या मेरा?

तनु तड़प तड़प कर तप्त तात ने त्यागा,

क्या रहा अभीप्सित और तथापि अभागा?

हा! इसी अयश के हेतु जनन था मेरा,

निज जननी ही के हाथ हनन था मेरा।

अब कौन अभीप्सित और आर्य वह किसका?

संसार नष्ट है भ्रष्ट हुआ घर जिसका।

मुझसे मैंने ही आज स्वयं मुँह फेरा,

हे आर्य, बता दो तुम्हीं अभीप्सित मेरा?"

प्रभु ने भाई को पकड़ हृदय पर खींचा;

रोदन जल से सविनोद उन्हें फिर सींचा!

"उसके आशय की थाह मिलेगी किसको,

जन कर जननी ही जान न पाई जिस

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