कबीर इस संसार कों, समझाऊँ कै बार।
पूंछ ज पकडै भेद की, उतऱ्या चाहै पार।।2.20।।
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कबीर इस संसार कों, समझाऊँ कै बार।
पूंछ ज पकडै भेद की, उतऱ्या चाहै पार।।
अर्थ:
कबीर कहते हैं–कितनी बार समझाऊँ मैं इस बावली दुनिया को ! भेड़ की पूँछ पकड़कर पार उतरना चाहते हैं ये लोग ! [अंध-रूढ़ियों में पड़कर धर्म का रहस्य समझना चाहते हैं ये लोग !]
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