कबीर की भक्ति भावना का वर्णन अपने शब्दो में कीजिय।
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कबीर दास जी ने गुरु भक्ति धारा के कवि हैं जो एक ईश्वर पर विश्वास रखते हैं उन्होंने मूर्ति पूजा का खंडन किया है उन्हें उनके अनुसार यदि पत्थर को पूजने से स्वर मिलते हैं तो वह केवल पत्थर को ही पूछना चाहते हैं पत्थर पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहाड़ ताते तो चाकी भली पीस खाए संसार व समाज को एक सूत्र में बांधने का प्रयास करते थे उनका भक्ति मार्ग अत्यंत सरल है वह ईश्वर को मंदिर मस्जिद में नहीं बल्कि अपने मन में ढूंढने बोलते हैं वह यह भी हैं कहते हैं कि नाम से बड़ा इंसान का कर्म होता है इसलिए सदैव कर्म पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ऊंचे कुल का जनमिया करनी ना हो स्वर्ण कलश सुरा भरा साधू निंदा
Question:- कबीर के भक्ति भावना स्पष्ट कीजिए⤵
Answer:-⤵
कबीर एक लेखक था और वह किताबें बहुत ही भक्ति से लेकर उनमें इतनी भक्ति थी इतनी भक्ति तीसरी सकती क्योंकि भक्ति में कि कोई मुसीबत उनके सामने आने से पहले ही डर के चली जाती है कोई भी मुसीबत उनके सामने टिक नहीं पाते. अब यह तो जानते ही है कि आसमान में इतने सितारे हैं कि उन्हें गिनना मुश्किल है लेकिन उन आसमान के सितारों से भी अधिकतर ज्यादा भक्ति है कबीर के हृदय में जैसे हम स्माल सितारों को गिन नहीं पाते उसी तरह हम अनुभव नहीं कर सकते कि कबीर के ह्रदय में कितनी भागती है और आजकल के संसार में ऐसी भक्ति किसी के हृदय में पाना मुश्किल है.कबीर के मन में बहुत ही ज्यादा भागते हैं और हमें ऐसे लोगों की आजकल के संसार में बहुत जरूरत है.अब आप यह सोच रहे होंगे कि ऐसे इंसान तो हम भी बन सकते हैं भक्ति करके लेकिन अगर आप यह सोच रहे तो आप गलत सोच है क्योंकि अगर आपको कभी तो ऐसा ही इंसान बनना है तो आपको सिर्फ भक्त ही नहीं और भी बहुत से गुण अपने अंदर लाने होंगे जैसे कि बड़ों का आदर करना दूसरे की सहायता करना आदि बहुत से अच्छे कर्म कर रहे होंगे तभी आप कबीर के जैसे कॉपी इंसान बन सकते हो.