Hindi, asked by rohit562, 1 year ago

कबीर का जीवन परिचय बताते हुए स्पष्ट कीजिए कि तत्कालीन युग की अपेक्षा आज उनकी शिक्षाए कैसे प्रासंगित है?

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Answered by neelvibhu
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जन्म स्थान के बारे में विद्वानों में मतभेद है परन्तु अधिकतर विद्वान इनका जन्म काशी में ही मानते हैं, जिसकी पुष्टि स्वयं कबीर का यह कथन भी करता है।

"काशी में परगट भये ,रामानंद चेताये "

कबीर के गुरु के सम्बन्ध में प्रचलित कथन है कि कबीर को उपयुक्त गुरु की तलाश थी। वह वैष्णव संत आचार्य रामानंद को अपना अपना गुरु बनाना चाहते थे लेकिन उन्होंने कबीर को शिष्य बनाने से मना कर दिया लेकिन कबीर ने अपने मन में ठान लिया कि स्वामी रामानंद को ही हर कीमत पर अपना गुरु बनाऊंगा ,इसके लिए कबीर के मन में एक विचार आया कि स्वामी रामानंद जी सुबह चार बजे गंगा स्नान करने जाते हैं उसके पहले ही उनके जाने के मार्ग में सीढ़ियों लेट जाऊँगा और उन्होंने ऐसा ही किया। एक दिन, एक पहर रात रहते ही कबीर पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े। रामानन्द जी गंगास्नान करने के लिये सीढ़ियाँ उतर रहे थे कि तभी उनका पैर कबीर के शरीर पर पड़ गया। उनके मुख से तत्काल 'राम-राम' शब्द निकल पड़ा। उसी राम को कबीर ने दीक्षा-मन्त्र मान लिया और रामानन्द जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया।कबीर के ही शब्दों में-

काशी में परगट भये , रामानंद चेताये

जीविकोपार्जन के लिए कबीर जुलाहे का काम करते थे।

कबीर की दृढ़ मान्यता थी कि कर्मों के अनुसार ही गति मिलती है स्थान विशेष के कारण नहीं। अपनी इस मान्यता को सिद्ध करने के लिए अंत समय में वह मगहर चले गए ;क्योंकि लोगों मान्यता थी कि काशी में मरने पर स्वर्ग और मगहर में मरने पर नरक मिलता है।मगहर में उन्होंने अंतिम साँस ली। आज भी वहां स्थित मजार व समाधी स्थित है।


rohit562: thank you
Answered by Anonymous
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संत कबीर का जन्म 1398 में हुआ था । उनका देहांत 1518 में हुआ था ।वे निर्गुण भक्ति में विश्वास करते थे ।


महात्मा कबीर का जन्म ऐसे समय में हुआ, जब भारतीय समाज और धर्म का स्वरुप अधंकारमय हो रहा था। 

महात्मा कबीर के जन्म के विषय में भिन्न- भिन्न मत हैं। 



भक्ति साहित्य की निर्गुण शाखा में संत कबीरदास ने जो लोकप्रियता प्राप्त की, वैसी न तो उनसे पहले और न बाद में ही किसी अन्य को मिली।उन्हें अनुभव के आधार पर ज्ञान प्राप्त हुआ था ।


Note: अबकहु राम कवन गति मोरी।

तजीले बनारस मति भई मोरी।

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