Hindi, asked by Karthick9637, 9 months ago

कबीर के काव्य मे व्याप्त भक्ति भावना पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखे ☺

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Answered by saeedpathan888
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कबीर या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिखों ☬ के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।[1][2]

कबीर

वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म निरपेक्ष थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की थी।[1][3] उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी।[2]

धर्मदास ने उनकी वाणियों का संग्रह " बीजक " नाम के ग्रंथ मे किया जिसके तीन मुख्य भाग हैं : साखी , सबद (पद ), रमैनी

साखी: संस्कृत ' साक्षी , शब्द का विकृत रूप है और धर्मोपदेश के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अधिकांश साखियां दोहों में लिखी गयी हैं पर उसमें सोरठे का भी प्रयोग मिलता है। कबीर की शिक्षाओं और सिद्धांतों का निरूपण अधिकतर साखी में हुआ है।

सबद गेय पद है जिसमें पूरी तरह संगीतात्मकता विद्यमान है। इनमें उपदेशात्मकता के स्थान पर भावावेश की प्रधानता है ; क्योंकि इनमें कबीर के प्रेम और अंतरंग साधना की अभिव्यक्ति हुई है।

रमैनी चौपाई छंद में लिखी गयी है इनमें कबीर के रहस्यवादी और दार्शनिक विचारों को प्रकट किया गया है

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Answered by Anonymous
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Question:- कबीर के काव्य मे व्याप्त भक्ति भावना पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखे⤵

Answer:-

कवि मनुष्य को झूठे असत्य और गंदे और जो गंदे काम करते हैं आदि उनसे बचने की चेतावनी देता है क्योंकि अगर हम उनके साथ रहेंगे तो धीरे-धीरे हम भी उनकी तरह बनते जाएंगे वह कहते हैं ना जिसकी साथ रहते हैं उसकी संगति का असर पड़ता है अगर हम अच्छे व्यक्ति साथ रहेंगे तो अच्छी संगति का असर पड़ेगा में अच्छे बन जाएगा और वही गंदे आदि लोग साथ रहेगी तो उनका आश्रम पर पड़ेगा इसलिए कभी इन लोगों से बचने की चेतावनी देता है और कहता है अच्छे लोगों के साथ रहो अच्छे बनो अच्छे कर्म करो और अच्छा पाव भगवान के आशीर्वाद से भगवान सर पर हाथ रखेंगे .

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