Hindi, asked by ananyagupta0, 11 months ago

कबीर की साखियाँ हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि हैं।' -कथन की पुष्टि सोदाहरण कीजिए।​

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Answered by shishir303
15

कबीर की साखियाँ हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि हैं, कबीर की साखियाँ सामान्य जन के मन पर एक गहरा प्रभाव डालती है। कबीर का साखियाँ सीधे जनमानस से इसलिये लोकप्रिय हैं क्योंकि ये सामान्य जन के जीवन से जुड़ी हुईं हैं। कबीर की साखियाँ में अनेक भाषाओं के शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। कबीर के साखियाँ की भाषा-शैली ठेठ देसी है, इस कारण इनकी पहुँच सामान्य जन तक पहुँच बहुत सहज हो जाती है। उन्होंने अपनी साखियाँ के माध्यम से जीवन की गूढ़ बातों को बड़े ही सरल और सुंदर शब्दों में कह दिया है।

एक उदाहरण से समझते हैं....

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।

मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान||

इस साखी में कबीर ने जात-पात पर कड़ा प्रहार किया है। वे कहते हैं कि व्यक्ति की पहचान उसके ज्ञान और गुणों से होनी चाहिये न कि उसकी जाति से। जिस व्यक्ति के अंदर सच्चा ज्ञान है और वह गुणों से परिपूर्ण है तो ये महत्व नही रखता कि उसकी जाति क्या है। कबीर कहते हैं, व्यक्ति के आंतरिक गुणों का सम्मान करो जो तलवार के समान है, व्यक्ति का शरीर और उसकी जाति तो म्यान के समान है। महत्व तलवार का होता है, क्योंकि असली कार्य तो उसे करना है, म्यान तो महज एक आवरण है, तलवार के बिना उसका कोई महत्व नही। जबकि म्यान के बिना भी तलवार महत्व रहता है। उसी प्रकार मानव शरीर और उसकी जाति तो म्यान के समान हैं, और उसके गुण आदि तलवार  के समान हैं।

यहाँ कबीर ने तलवार और म्यान का अद्भुत उदाहरण देकर व्यक्ति के गुणों का सम्मान करने की बात को बड़े प्रभावशाली तरीके से कहा है। उनकी यही भाषा-शैली सीधे जनमानस के मन पर चोट करती थी, इसलिये कबीर की साखियाँ हमारी अमूल्य निधि है क्योंकि कबीर की सारी साखियाँ में जीवन का गहन दर्शन छुपा है।

Answered by Ghostrider999
4

Answer:

कबीर की साखियाँ हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि हैं, कबीर की साखियाँ सामान्य जन के मन पर एक गहरा प्रभाव डालती है। कबीर का साखियाँ सीधे जनमानस से इसलिये लोकप्रिय हैं क्योंकि ये सामान्य जन के जीवन से जुड़ी हुईं हैं। कबीर की साखियाँ में अनेक भाषाओं के शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। कबीर के साखियाँ की भाषा-शैली ठेठ देसी है, इस कारण इनकी पहुँच सामान्य जन तक पहुँच बहुत सहज हो जाती है। उन्होंने अपनी साखियाँ के माध्यम से जीवन की गूढ़ बातों को बड़े ही सरल और सुंदर शब्दों में कह दिया है।

एक उदाहरण से समझते हैं....

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।

मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान||

इस साखी में कबीर ने जात-पात पर कड़ा प्रहार किया है। वे कहते हैं कि व्यक्ति की पहचान उसके ज्ञान और गुणों से होनी चाहिये न कि उसकी जाति से। जिस व्यक्ति के अंदर सच्चा ज्ञान है और वह गुणों से परिपूर्ण है तो ये महत्व नही रखता कि उसकी जाति क्या है। कबीर कहते हैं, व्यक्ति के आंतरिक गुणों का सम्मान करो जो तलवार के समान है, व्यक्ति का शरीर और उसकी जाति तो म्यान के समान है। महत्व तलवार का होता है, क्योंकि असली कार्य तो उसे करना है, म्यान तो महज एक आवरण है, तलवार के बिना उसका कोई महत्व नही। जबकि म्यान के बिना भी तलवार महत्व रहता है। उसी प्रकार मानव शरीर और उसकी जाति तो म्यान के समान हैं, और उसके गुण आदि तलवार  के समान हैं।

यहाँ कबीर ने तलवार और म्यान का अद्भुत उदाहरण देकर व्यक्ति के गुणों का सम्मान करने की बात को बड़े प्रभावशाली तरीके से कहा है। उनकी यही भाषा-शैली सीधे जनमानस के मन पर चोट करती थी, इसलिये कबीर की साखियाँ हमारी अमूल्य निधि है क्योंकि कबीर की सारी साखियाँ में जीवन का गहन दर्शन छुपा है।

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