कबीर किस पथ के पथिक हैं ?Full Marks : 1 आनंदपथ के
प्रभु प्राप्ति के
सुख - समृधि के
उन्नति - पथ के
Answers
सही जवाब है...
प्रभु प्राप्ति के
स्पष्टीकरण:
कबीर प्रभु प्राप्ति पथ के पथिक हैं। कबीर ने सदैव अपने दोहों के माध्यम से प्रभु प्रभु प्राप्ति पर जोर दिया है। उनके अनुसार जीवन का अंतिम लक्ष्य प्रभु की प्राप्ति ही है और प्रभु की प्राप्ति सच्चा ज्ञान हासिल करने पर ही होगी। जब मनुष्य अपने अंदर की अज्ञानता को मिटा कर अपने अंदर ज्ञान के प्रकाश को जला लेगा तो उसे अपने अंदर निहित ईश्वर की पहचान हो जाएगी और जिस दिन उसने प्रभु को समझ लिया, वह प्रभु प्राप्ति के मार्ग पर चल पड़ेगा।
Answer:
प्रभु प्राप्ति के
स्पष्टीकरण:
कबीर प्रभु प्राप्ति पथ के पथिक हैं। कबीर ने सदैव अपने दोहों के माध्यम से प्रभु प्रभु प्राप्ति पर जोर दिया है। उनके अनुसार जीवन का अंतिम लक्ष्य प्रभु की प्राप्ति ही है और प्रभु की प्राप्ति सच्चा ज्ञान हासिल करने पर ही होगी। जब मनुष्य अपने अंदर की अज्ञानता को मिटा कर अपने अंदर ज्ञान के प्रकाश को जला लेगा तो उसे अपने अंदर निहित ईश्वर की पहचान हो जाएगी और जिस दिन उसने प्रभु को समझ लिया, वह प्रभु प्राप्ति के मार्ग पर चल पड़ेगा।
Explanation:
कबीर या कबीर साहेब जी 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में परमेश्वर की भक्ति के लिए एक महान प्रवर्तक के रूप में उभरे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिक्खों ☬ के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।[1][2] वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म एक सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास रखते थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना भी।[1][3] उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें बहुत प्रताड़ित किया।[2] कबीर पंथ नामक धार्मिक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी हैं।[4]
जीवन परिचय
कबीर साहेब का (लगभग 14वीं-15वीं शताब्दी) जन्म स्थान काशी, उत्तर है। कबीर साहेब का प्राकट्य सन 1398 (संवत 1455), में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को ब्रह्ममूहर्त के समय कमल के पुष्प पर हुआ था.[5] कबीर साहेब (परमेश्वर) जी का जन्म माता पिता से नहीं हुआ बल्कि वह हर युग में अपने निज धाम सतलोक से चलकर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं।[5] कबीर साहेब जी लीलामय शरीर में बालक रूप में नीरु और नीमा को काशी के लहरतारा तालाब में एक कमल के पुष्प के ऊपर मिले थे। [6][7]
अनंत कोट ब्रह्मांड में, बंदी छोड़ कहाए | सो तो एक कबीर हैं, जो जननी जन्या न माए ||
परमात्मा कबीर जी जनसाधारण में सामान्यतः कलयुग में "कबीर दास" नाम से प्रसिद्ध हुआ तथा उन्होंने बनारस (काशी, उत्तर प्रदेश) में जुलाहे की भूमिका की। परंतु विडंबना यह है कि सर्व सृष्टि के रचनहार, भगवान स्वयं धरती पर अवतरित हुए और स्वयं को दास शब्द से सम्बोधित किया। कबीर साहेब के वास्तविक रूप से सभी अनजान थे सिवाय उनके जिन्हें कबीर साहेब ने स्वयं दर्शन दिए और अपनी वास्तविक स्थिति से परिचित कराया जिनमें शिख धर्म के परवर्तक नानक देव जी (तलवंडी, पंजाब), आदरणीय धर्मदास जी ( बांधवगढ़, मध्यप्रदेश), दादू साहेब जी (गुजरात) आदि आदि शामिल हैं। वेद भी पूर्ण परमेश्वर जी की इस लीला की गवाही देते हैं (ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 4 मन्त्र 6)। इस मंत्र में परमेश्वर कबीर जी को "तस्कर" अर्थात छिप कर कार्य करने वाला कहा है। नानक जी ने भी परमेश्वर कबीर साहेब की वास्तविक स्थिति से परिचित होने पर उन्हें "ठग" (गुरु ग्रंथ साहेब, राग सिरी, महला पहला, पृष्ठ 24) कहा है।[6]
आध्यात्मिक गुरु
कबीर साहेब जी को गुरु बनाने की कोई आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि वह अपने आप में स्वयंभू यानि पूर्ण परमात्मा है। परंतु उन्होंने गुरु मर्यादा व परंपरा (गुरु शिष्य के नाते) को निभाए रखने के लिए कलयुग में स्वामी रमानंद जी को अपना गुरु बनाया।[8] कबीर साहेब जी ने ढाई वर्ष के बालक के रूप में पंच गंगा घाट पर लीलामाय रूप में रोने कि लीला कि थी, स्वामी रमानंद जी वहाँ प्रतिदिन सन्नान करने आया करते थे, उस दिन रमानंद जी की खड़ाऊँ कबीर परमात्मा जी के ढाई वर्ष के लीलामय शरीर में लगी, उनके मुख से तत्काल 'राम-राम' शब्द निकला। कबीर जी ने रोने कि लीला की, तब रमानंद जी ने झुककर उनको गोदी में उठाना चाहा, उस दौरान उनकी (रमानंद जी की) कंठी कबीर जी के गले में आ गिरी। तब से ही रमानंद जी कबीर साहेब जी के गुरु कहलाए।[6]
कबीर के ही शब्दों में:
काशी में परगट भये , रामानंद चेताये ||
स्वामी रामानंद जी से ज्ञान चर्चा
एक दिन स्वामी रामानंद जी के शिष्य विवेकानंद जी कहीं प्रवचन दे रहे थे। कबीर साहेब जी भी वहाँ चले गए और उनके प्रवचनों को सुनने लगे। ऋषि विवेकानन्द जी विष्णु पुराण से कथा सुना रहे थे। कह रहे थे, विष्णु भगवान सर्वेश्वर हैं,अविनाशी हैं। इनके कोई जन्मदाता माता-पिता नहीं है। 5 वर्षीय बालक कबीर देव जी भी उनका सत्संग सुन रहे थे। ऋषि विवेकानन्द जी ने अपने प्रवचनों को विराम दिया तथा उपस्थित श्रोताओं से कहा यदि किसी को कोई शंका है या कोई प्रश्न करना है तो वह निःसंकोच अपनी शंका का समाधान करा सकता है। कबीर परमेश्वर खड़े हुए तथा ऋषि विवेकानन्द जी से करबद्ध होकर प्रार्थना कि हे ऋषि जी! आपने भगवान विष्णु जी के विषय में बताया कि ये अजन्मा हैं, अविनाशी है। इनके कोई माता-पिता नहीं हैं। एक दिन एक ब्राह्मण श्री शिव पुराण के रूद्र संहिता अध्याय 6 एवं 7 को पढ़ कर श्रोताओं को सुना रहे थे, दास भी उस सत्संग में उपस्थित था। उसमें वह महापुरुष बता रहे थे कि विष्णु और ब्रह्मा की उत्पत्ति शिव भगवान से हुई है। जिसका प्रमाण देवी भागवत पुराण अध्याय 5 सकन्द 3 पेज संख्या 123 पर में लिखा है।
कबीर परमेश्वर जी के मुख से उपरोक्त उल्लेख सुनकर ऋषि विवेकानन्द अति क्रोधित हो गये तथा उपस्थित श्रोताओं से बोले यह बालक झूठ बोल रहा है। पुराणों में ऐसा कहीं नहीं लिखा है। उपस्थित श्रोताओं ने भी सहमति व्यक्त की कि हे ऋषि जी आप सत्य कह रहे हो यह बालक क्या जाने पुराणों के गूढ़ रहस्य को? आप इस बच्चे की बातों पर ध्यान न दो। ऋषि विवेकानन्द जी ने पुराणों को उसी समय देखा जिसमें सर्व विवरण विद्यमान था। परन्तु मान हानि के भय से अपने झूठे व्यक्तव्य पर ही दृढ़ रहते हुए कहा हे बालक तेरा क्या नाम है? तू किस जाति का है? तूने तिलक लगाया है। क्या तूने कोई गुरु धारण किया है? शीघ्र बताइए।