कबीर के दोहे
1 सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघारिया, अनंत दिखावनहार।।
साच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदे साच है, ता हिरदे गुरु आप।।
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बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसै पेड खजूर
पंथी को छाया नही फल लागे अतिदुर।
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