कबीर के दोहेकी पक्तिं क्ति ‘जाति न पछू ो साध की’ समाज को क्या सदं ेश देती है?
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कबीर दास जी कहते हैं, सच्चा साधु सब प्रकार के भेदभावों से ऊपर उठा हुआ माना जाता है | साधू से यह कभी नहीं पूछा जाता की वह किस जाति का है उसका ज्ञान ही, उसका सम्मान करने के लिए पर्याप्त है | जिस प्रकार एक तलवार का मोल का आंकलन उसकी धार के आधार पर किया जाता है ना की उसके म्यान के आधार पर ठीक उसी प्रकार, एक साधु की जाति भी तलवार के म्यान के समान है और उसका ज्ञान तलवार की धार के समान |mark me as brainliest
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