History, asked by ajaytonday3404, 5 months ago

कबीर की उलटबाँसी रचनाओं का क्या तात्पर्य है। कोई तीन उदाहरणो के साथ स्पष्ट कीजिए।

Answers

Answered by vsdhakad81
5

Answer:

सीधे-सीधे न कहकर, घुमा-फिराकर उलटकर कविता माध्यम से कही हुई बात अथवा व्यंजना उलटवाँसी कहलाती है। संतों और विशेष रूप से कबीर ने अनेक उलटवाँसियों की रचना की है जिन्हें लेकर ऐतिहासिक दृष्टि तथा संतमानस की ठीक ठीक समझ के अभाव के कारण न केवल भारी भ्रम फैला है, अपितु काफी विवाद भी हुआ है।

अवधू ऐसा ग्यान विचारै।

भेरैं बढ़े सु अधधर डूबे, निराधार भये पारं।। टेक।।

ऊघट चले सु नगरि पहूँते, बाट चले ते लूटे।

एक जेवड़ी सब लपटाँने, के बाँधे के छूटे

कबीर कहते हैं, "हे अवधू ! जो लोग नाव पर चढ़े (भिन्न-भिन्न इष्टदेवों का आधार लेकर चले) वे समुद्र में डूब गए (संसार में ही लिप्त रहे), किंतु जिन्हें ऐसा कोई भी साधन न था वे पार लग गए (मुक्त हो गए)। जो बिना किसी मार्ग के चले वे नगर (परम पद) तक पहुँच गए, किंतु जिन व्यक्तियों ने मार्ग (अंधविश्वासपूर्ण परंपराओं) का सहारा लिया, वे लूट लिए गए (उनके आध्यात्मिक गुणों का ह्रास हो गया)। सभी बंधन (माया) में बँधे हुए हैं, किसे मुक्त और किसे बद्ध कहा जाए।

Similar questions