कबीर की उलटबांसी रचनाओ का क्या तात्पर्य है कोई तीन उदाहरण के साथ स्पस्ट कीजिये 75से 100 शब्दो मे
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hii mate
सीधे-सीधे न कहकर, घुमा-फिराकर उलटकर कविता माध्यम से कही हुई बात अथवा व्यंजना उलटवाँसी कहलाती है। संतों और विशेष रूप से कबीर ने अनेक उलटवाँसियों की रचना की है जिन्हें लेकर ऐतिहासिक दृष्टि तथा संतमानस की ठीक ठीक समझ के अभाव के कारण न केवल भारी भ्रम फैला है, अपितु काफी विवाद भी हुआ है।
डॉ॰ पीतांबरदत्त बड़थ्वाल (हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय, प्रथम संस्करण, पृ. ३७०-७१) के मत से आध्यात्मिक अनुभव की अनिर्वचनीयता के कारण साधक को कभी-कभी परस्पर विरोधी उक्तियों द्वारा (अपना मनोगत) व्यक्त करने का ढंग अपनाना पड़ता है, जैसे चंद्रविहीन चाँदनी, सूर्यविहीन सूर्यप्रकाश आदि और इसके आधार पर ऐसे गूढ़ प्रतीकों की सृष्टि हो जाती है जिन्हें "उलटवाँसी" या "विपर्यय" कहते हैं।
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