कबीर ने ईश्वर का निवास अपने अंदर ही देर में ही बताया है
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ईश्वर हर प्राणी में वास करता है वह कहीं भी बाहर नहीं है। वह तो उनकी स्वांसोंं की सांस में है। जब तक जीव की सांस चलती है तब तक वह जीवित है, प्राणवान है और सभी प्राणियों में ईश्वर का वास है। इसलिए कबीर ने ईश्वर को 'सब स्वांसोंं की सांस में' कहा है।
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