कबीर
पद
हम तौ एक एक करि जाना।
दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिन पहिचानां ।।
एकै पवन एक ही पानी एकै जोति समाना।
एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै कोहरा सांनां।।
जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटे कोई।
सब घटि अंतरि तूंही व्यापक धरै सरूपै सोई।।
माया देखि के जगत लुभांना काहे रे नर गरबांनां।
निरभै भया कछू नहिं ब्यापै कहै कबीर दिवानां।।
पद 2
संतो देखत जग बौराना।
साँच कहौं तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना।।
नेमी देखा धरमी देखा, प्रात करै असनाना।
आतम मारि पखानहि पूजै, उनमें कछु नहिं ज्ञाना।।
बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़े कितेब कुराना।
कै मुरीद तदबीर बतावै, उनमें उहै जो ज्ञाना।।
आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।
पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।।
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।
pls explain this in English line by line plz...
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Explanation:
u should translate it in google..¯\_(ツ)_/¯
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